Hindi Literature_Dharmvir Bharti_हिंदी साहित्य_धर्मवीर भारती
धर्मवीर भारती और गिरिजा कुमार माथुर
क्या गुदड़ी बाजार है यह हिंदी साहित्य नामक स्थान! मालूम होता है यहां प्रतिभा, genuineness और निश्छलता आदि गुण बहुत मंहगे पड़ते हैं। और खिलाफत में आवाज उठा नहीं सकते-कहीं पूज्या महादेवी, कहीं श्रद्वेय दिनकर, कहीं मान्यवर (बालकृष्ण) राव और उनसे बचो तो ये घिनौने आस्तीन के सांप-मुंह में सामने मिठास और पीठ पीछे जहर के दांत!
खत लिखिएगा या बस अकेले ही बकता रहूँगा मैं। कब तक आखिर कब तक!
-धर्मवीर भारती, गिरिजाकुमार माथुर को एक पत्र में (अक्षर अक्षर यज्ञ, पेज 55, 1955/56)
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