दीपावली
सारा उत्तर भारत इसे अर्थ की देवी माधवी या लक्ष्मी के त्योहार के रूप में ही मनाता है। तब क्या प्रकाश के जगमगाते असंख्य दीपकों की पांत अर्थ गरिमा की द्योतक है। भारत का गरीब से गरीब आदमी भी जिसका एकमात्र गौरव उसका धर्म बोध ही है, माटी का एक जोड़ा दीया अपने दरवाजे के सामने इस दिन जरूर रखता है। उन दीपकों से उसका अंहकार नहीं, उसकी श्रद्वा प्रकाशित हो रही है। यह श्रद्धा उसके अन्तर्निहित मनुष्यता की गरिमा है और श्रद्धा धर्मबोध और पवित्रताबोध से जुड़ी है, अतः यह हमारे अवचेतन को धर्म-मोक्ष के मार्ग पर ठेलती है।
-कुबेरनाथ राय, हिंदी के प्रसिद्ध ललित निबंधकार अपने निबंध संग्रह "मराल" में
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