प्रत्येक अनुभव सार्थक होने के लिए शब्द पाना चाहता है. अर्थ विस्तार अपनी ही भाषा में उपयुक्त होता है. अगर दूसरी भाषा से भी अर्थ गहराता है तो स्वागतयोग्य है पर अगर अर्थ की स्थान पर अनर्थ होता दिखे तो फिर ऐसा करना अपेक्षित नहीं. वैसे गीता में कहा है कि स्वधर्म नहीं त्यागना चाहिए.
धर्म के बाह्य पक्ष नहीं आन्तरिक आयाम के लिए अंतिम पंक्ति लिखी थी. बाकि अंग्रेजी का भारत में भाषाई इतिहास ही वर्चस्व-संघर्ष का है. इस बात से किसी को इंकार नहीं होगा. जहाँ हम सहज अपनी भाषा में अपनी बात कह सकें मूल मर्म तो यही है.
Saturday, March 11, 2017
expression in mother tongue_सार्थक अनुभव_अपनी भाषा
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