Sunday, March 26, 2017

दिल्ली कर रीगल सिनेमा_History of Regal Cinema of Delhi

पंजाब केसरी, 26032017

दिल्ली के कनॉट प्लेस में स्थित रीगल सिनेमाघर इस महीने (31 मार्च) बंद हो जाएगा। रीगल के मालिक इमारत के लिए सुरक्षा प्रमाणपत्र लेने में असफल होने के कारण अब राजधानी के इस 84 साल पुराने सिनेमाघर में आखिरी बार अनुष्का शर्मा की फिल्म 'फिल्लौरी' दिखाई जाएगी। सिनेमाघर के बाहर चिपके नोटिस में लिखा है, "मैनेजमेंट ने 31-03-2017 से बिल्डिंग में बिजनेस बंद करने का फैसला लिया है।" 


नयी दिल्ली कनॉट प्लेस में अधिकतर थिएटर 30 के दशक में बनें, जिनमें से अनेक जैसे रीगल, प्लाज़ा ओडियन और रिवोली प्लाज़ा आज भी लोकप्रिय व्यावसायिक सिनेमाघर के रूप में मौजूद हैं। बहराल, पुरानी दिल्ली में तो पहले से ही अनेक सिनेमाघर थे, पर रीगल नई दिल्ली का पहला सिनेमाघर था जो कि वर्ष 1931 में बना। रीगल थियेटर, कनॉट प्लेस में बनी सबसे पहली इमारत थी। जब यह सिनेमाघर खोला गया था तब इस क्षेत्र का व्यावसायिक रूप से इतना विकास नहीं हुआ था और रीगल को खुलते ही तत्काल सफलता नहीं मिली थी।


अंग्रेजी के प्रसिद्ध लेखक खुशवंत सिंह “सेलिब्रेटिंग दिल्ली” पुस्तक में बताते है कि उनके पिता (सरदार शोभा सिंह) नए शहर में एक सिनेमा-रीगल का निर्माण करने वाले पहले व्यक्ति थे। शुरू में उन्होंने खुद सिनेमाघर को चलाने की कोशिश की। मुझे याद है कि कई बार सिनेमाघर में केवल दस दर्शक होते थे और उन्हें दर्शकों को टिकट के उनके पैसे वापस लेने के लिए गुहार करनी पड़ती थी, जिससे उन्हें फिल्म को दिखाने पर पैसा बर्बाद नहीं करना पड़े। उस दौर में, पुरानी दिल्ली वालों खासकर चव्वनीवालों ने इसे पसंद नहीं किया क्योंकि वे खुले में बनी नई दिल्ली को एक भूतों की बस्ती मानते थे।


रीगल का डिजाइन नई दिल्ली के वास्तुकार एडविन लुटियंस के दल के साथी वॉल्टर स्काइज़ जॉर्ज ने तैयार किया था। रीगल की इमारत मॉल के प्रारूप की तरह दिखती है। मूल रूप से विक्टोरियन वास्तुकला से प्रेरित रीगल सिनेमाघर में मुगल प्रभाव, पाइट्रा द्यूरा सजावट में नज़र आता है। हैरानी की बात यह है कि यहाँ किया गया फूलों का रूपांकन, सफदरजंग मकबरे के समान है। रीगल एक ऐसा सिनेमाघर था जिसमें नाटक और फिल्में दोनों दिखाए जाते थे। इसका स्थापत्य-बाक्स, ग्रीन रूम, विंग्स आदि इसके इतिहास का पता देते हैं।


इस इमारत में एक ही छत के नीचे रीगल सिनेमा हॉल, दुकानें, और रेस्तरां मौजूद थे। रीगल का स्वरूप रंगमंच और सिनेमा को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था और इसमें स्टेंडर्ड नामक एक रेस्तरां भी था जो बाद में गेलॉर्ड बन गया। पहले रीगल में फिल्म देखना एक सांस्कृतिक कर्म माना जाता था। उस समय फिल्म देखने का मतलब तक के डेविकोस और आज के स्टैंडर्ड रेस्तरां तथा गेलार्ड में भोजन करना भी होता था।


सरदार खुशवंत सिंह के शब्दों में, एक बार प्रसिद्व नर्तक उदय शंकर ने उनसे (सरदार शोभा सिंह) संपर्क किया था। मशहूर नर्तक उदय शंकर अपने यूरोप के दौरे से लौटे थे और उनके नृत्य कार्यक्रमों की वहां के अखबारों में काफी तारीफ हुई थी। वे कुछ रातों के लिए रीगल सिनेमा को अपने नृत्य कार्यक्रमों के लिए किराए पर लेना चाहते थे। मेरे पिता ने उनसे पूछा किस लिए? उनका कहना था कि मैं नृत्य करना चाहता हूँ। मेरे पिता के विचार में पुरुषों के नृत्य का विचार केवल हिजड़ों के घुम-घुमकर हाथ से ताली बजाने तक ही सीमित था। उदय शंकर ने किराए के पैसे का अग्रिम में भुगतान करने के कारण मेरे पिता सहमत हो गए। वे उत्सुकतावश वहां यह देखने चले गए कि इस आदमी के नृत्य को देखने के लिए कौन आता है। उन्होंने देखा कि सिनेमाघर में जाने के लिए डिनर जैकेट पहने अंग्रेज पुरूषों और महिलाओं की कारों की कतार लगी हुई है। यह देखकर वे भी नृत्य देखने के लिए चले गए और उन्हें एहसास हुआ कि भारतीय नृत्य का मतलब हिजड़ों के अश्लील नाच से कहीं अधिक था। उन्होंने उदय शंकर और उनकी टोली को अपने कुछ अंग्रेज मित्रों से मिलने के लिए अपने घर पर आमंत्रित किया।

No comments:

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...