लोदी गार्डन को ब्रिटिश काल में विकसित करते हुए 9 अप्रैल 1936 को लेडी विलिंगडन ने इसका विधिवत उद्घाटन हुआ। यही कारण था कि इस पार्क का नाम लेडी विलिंगन पार्क रखा गया। दरअसल यह लेडी विलिंगडन, भारत के तत्कालीन वाइसरॉय और गवर्नर जनरल विलिंगडन के मार्कोस की पत्नी, की दूरदृष्टि थी,जिसके कारण आज का लोदी गार्डन अस्तित्व में आया।
अंग्रेज इतिहासकार पर्सिवल स्पीयर ने अपनी पुस्तक “दिल्ली के अपने स्मारक और इतिहास” में इस बगीचे के उद्घाटन के विषय पर मजेदार टिप्पणी करते हुए लिखा है कि पूरी दिल्ली एक महामारी के रूप में “विलिंगडनमय” हो गई। एक बगीचे के अलावा, तीन सड़कों, एक हवाई पट्टी क्षेत्र और एक अस्पताल का नाम पति, पत्नी या उनके रिश्तेदारों के नाम पर रखा गया था।
वर्ष 1996 में यहां पर भारतीय बोन्साई एसोसिएशन के सहयोग से एक राष्ट्रीय बोन्साई पार्क विकसित किया गया। जिसमें विभिन्न प्रजातियों के 10 से 50 साल पुराने बोन्साई पौधे रखे गए हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2011 में इसकी 75 वीं वर्षगांठ बनाई गई।
सुबह घूमने की शौकीन अंग्रेज़ वाइसरॉय की पत्नी को इसके लिए सैय्यद और लोधी राजवंशों के मकबरों से सटे इलाका सबसे बेहतर लगा। यह बात उनकी पारखी नजर में साफ आ गई कि मूल रूप से इनमें से हर मकबरे के साथ एक बाग जुड़ा हुआ था। यह बाग खैरपुर नामक गांव की जमीन का अधिग्रहण करके बनाया गया था। यह अधिग्रहण भूमि अधिग्रहण विधेयक 1894 के तहत किया गया। यहां के विस्थापितों को कोटला मुबारकपुर क्षेत्र सहित दिल्ली के अन्य स्थानों पर बसाया गया। वह बात अलग है कि आजादी के बाद के दौर में इनमें से अधिकतर स्थानों के नाम बदल दिए गए हैं। वह बात जुदा है कि दिल्ली जिमखाना क्लब में अब भी लेडी विलिंगडन के नाम पर स्विमिंग क्लब सुरक्षित है।
आजादी के बाद, ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व को देखते हुए इस पार्क का नाम लोधी गार्डन रखा गया। विख्यात वास्तुकार जे.ए. स्टीन ने वर्ष 1968 में इस बाग का विकास करते हुए सौंदर्यीकरण किया। जिसके तहत इस बाग के बीच में एक फव्वारे के साथ सर्पिल आकार का 300 मीटर लंबी और 3.3 मीटर गहरी झील विकसित की गई। दिसंबर 1970 में, घरों के भीतर रखे जाने वाले पौधों को रखने के लिए फोर्ड फाउंडेशन की मदद से एक ग्लास हाउस बनाया गया।
लोदी गार्डन में पक्षियों की 50 से अधिक प्रजातियों का बसेरा है। इनमें से अधिक लोकप्रिय पक्षियों की तस्वीरों को पार्क के चारों ओर प्रदर्शित किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि केन्या के नैरोबी शहर के बाद दिल्ली में दुनिया के किसी भी दूसरे शहर की तुलना में सबसे अधिक पक्षियों की प्रजातियां है।
दिल्ली के लोदी गार्डन को एक बड़ा ऑक्सीजन टैंक कह सकते हैं, क्योंकि यहां हर तरह के पेड़ हैं। ढेरों लोग यहां सुबह-शाम सैर के लिए आते हैं। उल्लेखनीय है कि देश के पहले उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार पटेल सुबह चार बजे लोधी गार्डन में सैर के लिए जाते थे। प्रदीप कृष्ण अपनी पुस्तक “ट्रीज ऑफ दिल्ली, एक फील्ड गाइड” में लिखते हैं कि पेड़ को देखने के लिहाज से लोदी गार्डन सबसे उपयुक्त स्थान है, जहां पर पेड़ों की 110 से अधिक प्रजातियां पाई जाती है और तो और यहां पर एक पेड़ को खोजने के लिए मानचित्र की सुविधा भी है।
लोधी गार्डन में भी एक कोस मीनार है, जिसमें ऊपर की तरफ निगरानी रखने के लिए एक खिड़की भी बनी हुई है।यह मीनार लोधी गार्डन के भीतर कोने में बने शौचालय के पास है। यह कोस मीनार एक पतले सिलेंडर के आकार की ऊपरी तरफ एक सजावटी निगरानी खिड़की वाली है।
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