आलोचक, एक हरम में किन्नरों की भांति होते हैं. वे दिन-प्रतिदिन के अनुभव के साक्षी होने के कारण जीवन के बढ़ने की सच्चाई से तो परिचित होते हैं पर वे स्वयं ऐसा कर पाने में सर्वथा अक्षम होंते हैं.
-ब्रेंडन बेहन, आयरिश लेखक
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