दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से बाहरी रिंग रोड से होते हुए मजनू का टीला की ओर आगे बढ़ने पर पहली लाल बत्ती पार करके ही बाएं हाथ पर ऊंचाई पर एक बहुत ही आलीशान कोठी बनी हुई है, जिसे मुगलों के जमाने में देश की आजादी की पहली लड़ाई से पहले थॉमस मेटकाफ (1795-1853) ने अपने रहने के लिए बनवाया था जो कि अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के दरबार में अंग्रेज गवर्नर जनरल का आखिरी ब्रिटिश रेसिडेंट (1835-53) था। 1835 में सिविल लाइन्स के पास औपनिवेशिक शैली में बनाया गया यह पहला घर टाउन हाउस कहलाता था।
इसका बाहरी हिस्सा बड़ा आकर्षक था क्योंकि इसके चारों ओर एक बरामदा था। यह बरामदा बहुत ऊंचा तथा 20 फुट से 30 फुट तक चौड़ा था और इसकी छतों को थामने वाले पत्थर के शानदार स्तम्भों की संख्या बहुत अधिक थी। परन्तु वास्तविक रूप से प्रशंसनीय इसका आंतरिक भाग था। इसकी संगमरमर की मेजें बड़ी सुन्दर और सुथरी लगती थी। इसकी दीवारों पर ऐतिहासिक घटनाओं से सम्बद्व दृश्य और प्रख्यात नर-नारियों के चित्र लगे थे। चांदी के बने कलमदान, कागज काटने के चाकू और घड़ियां इसके कमरों को आकर्षक और रमणीक रूप प्रदान करते थे। इस घर के उत्तर पूर्व की ओर का एक कमरा विशेष महत्ता का था। इसे नेपोलियन दीर्घा कहा जाता था क्योंकि इसे नेपोलियन बोनापार्ट की, जिसका थाॅमस बड़ा प्रशंसक था, स्मृति को समर्पित किया था। पुस्तक खानों में नेपोलियन के जीवन और कृतित्व से सम्बन्धित पुस्तकें और एक संगमरमर की पीठिका पर नेपोलियन की संगमरमर की मूर्ति रखी रहती थी। एक और कमरे में पुस्तकालय था, जो 25000 से अधिक पुस्तकों का उत्कृष्ट संग्रह के लिए उल्लेखनीय था।
1857 के पहले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में मैटकाफ हाउस को लूटा गया और बुरी तरह से जलाया गया। अंग्रेजों के दिल्ली पर दोबारा कब्जे के बाद इस घर का स्वामित्व उसके बेटे उसके बाद थियोफिलस मेटकाफ को मिल गया जो कि तत्कालीन अंग्रेज सेना का अफसर था।उसके बाद इस स्थान के कई मालिक बने।
जब अंग्रेजों ने कलकत्ता से अपनी राजधानी दिल्ली स्थानांतरित की तब 1920-1926 की अवधि में यह स्थान केन्द्रीय विधान मंडल की कांउसिल आॅफ स्टेट का गवाह रहा। बाद में, इस भवन का उपयोग संघीय लोक सेवा आयोग और स्वतन्त्रता के उपरांत गठित भारतीय प्रशासनिक सेवा प्रशिक्षण स्कूल द्वारा किया गया। यहां पर 1947 में एक आईएएस प्रशिक्षण स्कूल स्थापित किया गया था जहां आपातकालीन युद्ध सेवा के अफसरों को प्रशिक्षित किया गया था। बाद में 1949 में नियमित अफसरों के पहले बैच (जो कि नयी प्रतियोगी परीक्षाएं उत्तीर्ण कर के आया था) यहां प्रशिक्षित किया गया।
सन् 1958 में इस स्कूल को मसूरी ले जाने का निश्चय किया गया। इस निर्णय के साथ ही मैटकाफ हाउस के उतार-चढ़ाव पूर्व इतिहास का एक और अध्याय समाप्त हो गया। अब यह स्थान रक्षा मंत्रालय के अधीन है, जहां पर उसके कई सहायक कार्यालय हैं।
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