Saturday, October 21, 2017
Rahim_khankhana_Abdulभारतीय मुस्लिम परंपरा के प्रतीक रहीम
"दिल्ली और उसका अंचल" पुस्तक के अनुसार, इस मकबरे के अन्दर का हिस्सा विशेष रूप से अन्दरूनी छतों पर सुन्दर डिजाइनों सहित उत्कीर्ण और चित्रमय पलस्तर से अलंकृत किया गया है। बीच में दुहरे गुम्बद के आस-पास कोनों में छतरियां और बगलों के मध्य में दालान, खुले हाल, तैयार किए गए हैं।
रहीम अकबर के संरक्षक बैरम खां के बेटे थे, जिन्होंने अकबर और जहांगीर दोनों के दरबार में अपनी सेवाएं दी।17 दिसम्बर 1556 ईस्वी में लाहौर में रहीम का जन्म हुआ था। उनके पिता की अपने परिवार के साथ मक्का के लिए जाते हुए पाटन में एक अफगान ने हत्या कर दी, जिसके कारण रहीम से सिर से पिता का साया उठ गया। उसके बाद रहीम अकबर के संरक्षण में रहे और उन्होंने अपने जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखे, जो कम लोगों को देखने को मिलते हैं।
रहीम युद्ध-वीर, कुशल राजनीतिज्ञ, योग्य शासन-प्रबंधक, दानवीर, बहुभाषाविद् तथा उच्च कोटि के कलाकार थे। 1573 ईस्वी गुजरात विजय के पश्चात् उनकी प्रशंसा में अबुल फजल अपनी किताब "मुनशियात अबुल फजल" में लिखता है, इंसाफ की बात तो यह है तुमने अद्भुत वीरता दिखाई। तुम्हारे हौंसले की बदौलत फतह संभव हो पाई। बादशाह ने प्रसन्न होकर बहुत शाबाशी और “खानखाना” की बपौती पदवी तुम्हें दी।
अलबेरूनी ओर अबुल फजल के पश्चात् रहीम ही ऐसे तीसरे मुसलमान थे, जिन्होंने देश की एक जीवित जाति (हिन्दू) के साहित्य का इतना विशद तथा सहानुभूतिपूर्ण अध्ययन किया था।
"अब्दुर्रहीम खानखाना" पुस्तक में समर बहादुर सिंह लिखते हैं कि ऐसे वातावरण में रहकर भारत की ही मिट्टी में बने रहीम के उदार दिल में हिन्दी-संस्कृत के प्रति अपार अपनापन तथा ममत्व उमड़ आना स्वाभाविक ही था।
कविता के सच्चे ग्राहक होने के नाते कवियों के प्रति रहीम की उदारता इतिहास का विषय बन गयी है। कहते हैं कि उन्होंने गंग कवि को केवल एक छंद पर 36 लाख रूपया पुरस्कार दिया था। रहीम की स्वाभाविक उदारता से परिचित कवि गंग ने एक दिन दोहे में खानखाना से प्रश्न कियाःसीखे कहां नवाज जू ऐसी देन,ज्यों-ज्यों कर ऊंचे करो, त्यों-त्यों नीचे नैन।खानखाना ने तुरंत इसके उत्तर में यह दोहा पढ़ाःछेनदार कोऊ और है भेजत सो दिन-रैनलोग भरम हम पर धरें, याते नीचे नैन
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