Saturday, October 7, 2017

wall of old city of delhi_पुरानी दिल्ली की दीवार_फसील




मुगल बादशाह शाहजहां ने 1639 में दिल्ली में एक नया शहर बसाने का फैसला किया। नतीजन लाल किला और शाहजहानाबाद दस साल में बनकर पूरा हुआ। सात मील के दायरे में फैले हुए इस नए शहर की तीन तरफ एक मोटी और मजबूत दीवार बनी थी। महेश्वर दयाल की पुस्तक "दिल्ली जो एक शहर है" के अनुसार, शाहजहानाबाद की दीवार 1650 में पत्थर और मिट्टी की बनाई गई थी, जिस पर तब पचास हजार रूपए का खर्चा आया। यह 1664 गज चौड़ी  और नौ गज ऊंची थी और इसमें तीस फुट ऊंचे सत्ताईस बुर्ज थे।

1857 देश की आजादी की पहली लड़ाई में बादशाह बहादुर शाह जफर की हार के बाद दिल्ली अंग्रेजों के गुस्से और तबाही का शिकार बनी। फरवरी 1858 में अंग्रेज सैनिक अधिकारियों ने शहर की दीवार को ध्वस्त करने का आदेश दिया। तत्कालीन कमिश्नर जाॅन लॉरेंस इस को पूरी तरह एक गलत फैसला मानता था। उसने दिल्ली में सात मील लंबी दीवार को उड़ाने के लिए अपर्याप्त बारूद होने की बात कही। फिर आदेश को पूरा करने के लिए मजदूरों ने एक-एक करके हाथ से दीवार के पत्थरों को हटाया। यह एक तरह से जानबूझकर देरी के लिए अपनाई रणनीति हो सकती है, क्योंकि वर्ष के अंत में सुप्रीम गर्वनमेंट ने उसकी बातों को स्वीकार कर लिया और दीवार को कायम रखने का फैसला किया।


जबकि पश्चिम और उत्तर दिशा की दीवार के विपरीत दक्षिण-पश्चिमी तरफ की दीवार, असलियत में एक रूकावट थी तथा 1820 के दशक में इसके कुछ हिस्सों को ध्वस्त कर दिया गया।

मार्च 1859 में "दिल्ली गजट" ने यह खबर छापी कि महल के अंदर गोला-बारूद से उड़ाने का काम हो रहा है। लाॅर्ड कैनिंग ने इसके एक साल बाद वास्तुकला या ऐतिहासिक महत्व की पुरानी इमारतों को संरक्षित किए जाने का आदेश जारी किया पर तब तक काफी देर हो चुकी थी। 1861 में रेलवे लाइन बिछाने के हिसाब से शहर की दीवार में बने काबुली गेट और लाहौरी गेट के बीच शहर की दीवार को तोड़ दिया गया। 
फिर अंग्रेजों ने भारतीय शहरों की प्रकृति, भारतीयों के दोबारा आजादी की लड़ाई छेड़ने के भय और शहरों में नए निर्माण की जगह बनाने के लिए पुराने शहर के केंद्रों को खत्म करने की बातों का ध्यान करते हुए नए शहरों की योजना बनाई।

1872 में दिल्ली को एक सुंदर शहर बनाने की चाहत रखने वाला अंग्रेज कमीश्नर कर्नल क्रेक्रॉफ्ट पुराने शहर की दीवार को अराजकतावाद की निशानी मानता था। 1881 में नगर पालिका ने लाहौरी दरवाजे की दोनों ओर रास्ते बनाते हुए दिल्ली गेट को नष्ट करने का इरादा बनाया। तत्कालीन अंग्रेज कमांडर-इन-चीफ ने इस पर आपत्ति व्यक्त की क्योंकि वह कश्मीरी गेट और उससे सटी दीवारों को ऐतिहासिक महत्व की वजह से बचाना चाहता था।

1911 में अंग्रेजों के अपनी राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली लाने के साथ ही एडवर्ड लुटियन को शाहजहांनाबाद के बाहर नई दिल्ली बनाने का दायित्व सौंपा गया। वह (लुटियन) तो वायसराय भवन से लेकर जामिया मस्जिद तक एक सीधी सड़क निकालना चाहता था, जो पुरानी दिल्ली की दीवार और बाजारों से होते हुई गुजरती। लेकिन उसकी इस योजना को अंग्रेज राजा की स्वीकृति नहीं मिलने के कारण ऐसा नहीं हो सका।


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