Saturday, February 23, 2019

Delhi canal in pre british times_राजाओं को अमीर बनाने वाली एक नहर

23022019 दैनिक जागरण




भौगोलिक रूप से देखे तो यमुना नदी, रिज और पश्चिमी यमुना नहर से दिल्ली की पहचान रही है। दिल्ली में धरती की ढलान उत्तर से दक्षिण की ओर थी। दिल्ली क्षेत्र की भौतिक विशेषताओं में बृहत विविधता थी और इसी का परिणाम था कि मिट्टी में भी व्यापक किस्म के गुण थे।

शाहजहांनाबाद के आसपास की भूमि चार भागों में बंटी हुई थी। शहर के उत्तर और दक्षिण में नदी का पुराना तल क्षेत्र, जो कि सिंचित सुविधाओं से युक्त होने के कारण उपजाऊ था, खादर कहलाता था। जबकि दक्षिण और पश्चिम का पहाड़ी क्षेत्र, जिससे होकर नहर गुजरती थी, बंजर था जो कि खंडरात कहलाता था। खंडरात कलां शब्द इसी से निकला था, जिसका मतलब ही था खंडहर। शायद यह भी एक वजह थी कि तब शाहजहांनाबाद के लोग जमीन के नीचे गड़े खजाना मिलने की उम्मीद में जहां-तहां खुदाई करते थे।

पश्चिमी रिज का पहाड़ी क्षेत्र रेतीला और सूखा था, जो कि कोही कहलाता था और 1840 में दिल्ली जिले का एक तिहाई भाग खेती के अयोग्य माना जाता था। नजफगढ़ झील का निचला और पानी से भरा क्षेत्र के नजदीक उत्तर का इलाका डाबर कहलाता था। आज पश्चिमी दिल्ली में जनकपुरी के करीब डाबड़ी गांव, जहां एक पुलिस स्टेशन भी है, के नाम का मूल उसी में निहित है।

दिल्ली में नदी और नहर के अनपेक्षित और अकथनीय परिवर्तन से अलग 19 वीं सदी में इन इलाकों में राजनीतिक नियंत्रण और राजनीतिक नीति के कारण भूमि उपयोग के स्वरूप में अनेक बदलाव आए।
नदी के बहाव के मार्ग में बदलाव से धरती का उपजाऊपन भी प्रभावित हुआ। उस समय सिंचाई के तीन साधन थे। पहला नदी, जिस पर हमेशा भरोसा नहीं किया जा सकता था। दूसरा, कुंए जिनमें से कुछ का पानी खारा था और तीसरा मुहम्मद शाह तुगलक के जमाने से भी पुरानी मानी जाने वाली एक नहर (पश्चिमी यमुना नहर की पूर्ववर्ती) जिसका उद्गम करनाल में यमुना से था। अकबर के जमाने में इसकी मरम्मत हुई और शाहजहां के समय में अली मर्दन खान ने खेती की जमीन की सिंचाई, शिकारगाहों सहित शहर को पानी उपलब्ध करवाने के लिए पुर्ननिर्माण किया। 

17 वीं शताब्दी के अंत में सुजान रॉय ने बताया है कि नहर से कई परगनों में खेती में फायदा हुआ और राजधानी के करीब बागां को सिंचाई के लिए पानी मिला। ऐसा प्रतीत होता है कि इसका मुख्य उद्देश्य बागों को पानी मुहैया करवाना था जिसके कारण खेतों को भी पानी मिलने का फायदा हो गया। 1793 में इस नहर को देखकर विलियम फ्रैंकलिन ने लिखा कि यह 90 मील से भी लंबे क्षेत्र को उपजाऊ बना रही है। "एनशिंयट कैनाल्स" में कोल्विन ने लिखा है कि इस नहर को तैयार करवाने वाले व्यक्ति को इससे खासा फायदा हुआ और कहा जाता है कि नवाब सफदरजंग को इससे पच्चीस लाख की आमदनी हुई।

1770 के बाद करीब पचास साल तक यह नहर उपेक्षा का शिकार रही। दिल्ली पर अंग्रेजो के अधिकार के बाद नहर के कारण अमीर होने के किस्सों से प्रेरित होकर दो उद्यमी व्यक्तियों ने पहल करते हुए अपने और सरकार के फायदे के लिए प्रस्ताव रखें। मर्सर नामक एक अंग्रेज इंजीनियर ने अपने खर्चे पर नहर को तैयार करने की एवज में 20 साल तक होने वाली आय को लेने की पेशकश की। वहीं झज्जर नवाब के दीवान किशनलाल ने 70 हजार रूपए खर्च करके नजफगढ़ झील (जो कि 52 वर्ग मील का कोटरगत क्षेत्र था जिसमें पश्चिमी यमुना नहर बहती थी) से नहर निकालने और उससे आसपास के इलाकों के उपजाऊ बनने से अनुमानित लाभ में पचास फीसदी हिस्सेदारी का प्रस्ताव दिया था। इन दोनों प्रस्तावों को लेकर (अंग्रेज) सरकार और चतुर थी सो उसने इस काम को किसी एक व्यक्ति को न देने का फैसला किया। सरकारी अधिकारी भी इससे काम से होने वाले व्यावसायिक लाभ को लेकर जागरूक थे। शायद यही कारण था कि इन योजनाओं का क्रियान्वयन ही नहीं हो सका।

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