Saturday, June 15, 2019

Soil of Delhi_दिल्ली की माटी की कहानी

15062019, दैनिक जागरण 




हर जगह की मिट्टी का अपना रंग होता है और हर रंग कुछ कहता है। अगर देश की राजधानी दिल्ली की बात करें तो दिल्ली की मिट्टी की उर्वरता श्रेणी की है। यहां की मिट्टी पर यमुना नदी, बाढ़ के पानी, पहाड़ी और दक्षिण पश्चिम दिशा से आने वाली वायु का प्रभाव पड़ा है। मिट्टी की बनावट पर इन विभिन्न प्रभावों के आधार पर दिल्ली चार भू-आकृतिक विभागों में वर्गीकृत है। खादर या नयी जलोढ़ मिट्टी, बांगर या पुरानी जलोढ़ मिट्टी, डाबर या निचाई वाले क्षेत्र और कोही या चट्टानी या पहाड़ी क्षेत्र।


महरौली और तुगलकाबाद के पास का दक्षिण भाग पहाड़ी है, जिसे कोही कहते हैं। यमुना के किनारे का निचाई वाला क्षेत्र खादर कहलाता है। पहाड़ी से उत्तर में तथा ग्रान्ड ट्रन्क रोड से पश्चिम में जो इलाका पड़ता है और जो इसे खादर से अलग करते हैं, वह समतल मैदान बांगर कहलाता है। नजफगढ़ के पास निचान है, जहां वर्षा के मौसम में पहाड़ी से पश्चिम की ओर का पानी एकत्र हो जाता है और उसमें नजफगढ़ झील बन जाती है। यहां की मिट्टी सख्त (कठोर) है और डाबर कहलाती है।


खादर क्षेत्रों की मिट्टी
मिट्टियों में विशेष प्रकार की सतहें हैं। सबसे ऊपर की सतह मुलायम है और नीचे वह सख्त हो जाती है। ऊपर बाढ़ के द्वारा लाई गई चिकनी मिट्टी है और नीचे की सतह रेतीली है। आम तौर पर मिट्टी की मात्रा 13 से 17 प्रतिशत तक है और निचली सतहों पर 10 प्रतिशत से कम है। मिट्टी की संरचना मुख्य रूप से एक कणवाली या कमजोर विकसित कणीय है। औसत रूप से मिट्टी उपजाऊ है तथा प्रबन्ध के अच्छे उपायों से फसलों से काफी पैदावार ले जा सकती है। खादर की मिट्टी चार स्थानों पर पाई गई हैं-पल्ला, शाहदरा, गोकुलपुर और मदनपुर। जबकि अलीपुर की एक पांचवी प्रकार की मिट्टी भी है-जो हाल की तथा पुरानी जलोढ़ के बीच की है।


बांगर की मिट्टी (पुरानी जलोढ़)
भू आकृतिक रूप से बांगर का इलाका यमुना से दूर है और दिल्ली का उत्तर पश्चिमी भाग है। यहां की अधिकांश जमीनों में, नहरों और कुंओं से सिंचाई की जाती है और थोड़े से क्षेत्र में वर्षा के जल से। खेती की जमीन में प्रायः खारी नमकीन मिट्टी भी मिलती है। मिट्टी में बहुत अधिक खारापन होने के कारण काफी बड़े क्षेत्र में खेती नहीं हो पाती। इस क्षेत्र में पांच प्रकार की मिट्टी वाले स्थान अलीपुर, घेवरा, कराला, लाडपुर और नजफगढ़ है। नजफगढ़ की मिट्टी ही ऐसी है जिसमें पानी बहुत कम होता है और जहां रेत के ढूह मौजूद है या जहां की मिट्टी रेतीली है और जहां बाढ़ भी नहीं आती।


डाबर इलाके की मिट्टी (निचाई वाला क्षेत्र)
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है-डाबर इलाके में वर्षा के दिनों में आम तौर पर बाढ़ आती है क्योंकि यहां जो केवल एक नाला (नजफगढ़ नाला) है वह बाढ़ का सारा पानी बाहर नहीं निकाल पाता। यह इलाका दिल्ली का दक्षिण पश्चिमी और पश्चिमी भाग है। आम तौर पर मिट्टी रेतीली दुमट है और कुछ गहराई पर भारी हो जाती है तथा पूर्व से पश्चिम की ओर हल्की होती जाती है। यहां की मिट्टी जैविक तत्व तथा नाइट्रोजन की दृष्टि से अच्छी नहीं है। इस इलाके में चार प्रकार की मिट्टी वाले स्थान है-नजफगढ़, पालम, शिकारपुर और लाडपुर।


कोही इलाके (पहाड़ी इलाके) की मिट्टी
कोही इलाके की मिट्टी दिल्ली के क्वार्टजाइट या बालुकाश्मी चट्टानों से तथा छोटी नदियों के द्वारा बहाकर लाई गई स्थानीय मृदा से बनी है। मृदा गठन कहीं बलुई दुमट है, कहीं दुमट है। यहां भूमिगत जलस्तर काफी नीचा है, इसलिए सिंचाई बहुत बड़ी समस्या है। यहां सारी मिट्टी अवसादी हैं और आधार शैल के ऊपर दरदरी और उथली परंतु शेष प्रदेश में मूलतः जलोढ़ है।

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