Saturday, June 1, 2019

Historical Rocks and JNU's natural history_चट्टानों के बरअक्स जेेएनयू का प्राकृतिक इतिहास

01062019, दैनिक जागरण 




अगर आप एक खोजी दृष्टि रखते है तो अनेक बार बसी और उजड़ी दिल्ली एक उपयुक्त शहर है। जहां  कई ऐतिहासिक बसावटों वाले शहरों को अपने में समेटे हुए आज की दिल्ली में हर दिन एक नया मिथक, किंवदंती या ऐतिहासिक तथ्य सामने आता है। देश की राजधानी के दक्षिण में एक चट्टानी इलाके में स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेेएनयू) का इतिहास कुल जमा 53 वर्षों का है। जबकि विश्वविद्यालय में चट्टानें एक अलग प्राकृतिक विरासत की कहानी की साक्षी है।उल्लेखनीय है कि ये चट्टानें महाभारत में वर्णित सबसे प्रसिद्ध नगर इंद्रप्रस्थ, जिसे दिल्ली का प्राचीनतम नगर माना जाता है, से भी पुरानी है। अगर भूगोल की भाषा में कहे तो ये चट्टानें पाषाण युग या हिमयुग से भी प्राचीन है। अगर सटीक रूप से विश्लेषित करें तो ये चट्टानें पूर्व-केंब्रियन समय (करीब 2.4 करोड़ साल पुरानी) की है। भारत में पूर्व-केंब्रियन काल में छह वलनक प्रवर्तन के प्रमाण मिलते हैं, जिनमें से दिल्ली की ये चट्टानें भी हैं। दूसरे शब्दों में, “कैम्ब्रियन” का अर्थ है पृथ्वी के इतिहास का आरंभ। यहां मौैजूद चट्टानें, क्वार्टजाइट किस्म की मेटामॉर्फिक चट्टानें हैं जो कि अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा हैं। दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में गिनी जाने वाली अरावली का आविर्भाव पृथ्वी के इतिहास के प्रारंभिक बिंदु से भी पहले का है। 


"सेलिब्रेटिंग दिल्ली" पुस्तक में उपिन्दर सिंह लिखती है कि बी. एम. पांडे ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के परिसर में अचेउलियन कालखंड का पत्थर का एक औजार मिला था। वही मुदित त्रिवेदी नामक छात्र ने जेएनयू परिसर के प्रागैतिहासिक की खोज में कई पुरापाषाण, माइक्रोलिथ औजारों सहित और दूसरे मनोरंजक अवशेष ढूंढ निकाले। तमाम दावों और प्रति-दावों के मध्य इस बात में तनिक भी संशय नहीं है कि ये सभी चट्टानें पूर्व-ऐतिहासिक हैं। इस तरह, जेेएनयू की चट्टानों का गौरवशाली अतीत साक्ष्य रूप में स्वयंसिद्ध है। 


निर्जन स्थान पर होने के कारण इन चट्टानों के आसपास मानवीय बसावट नहीं बसी पर यह परकोटे वाली दिल्ली तक पहुंचने के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग का भाग थी। तब के व्यापारियों के लिए इन पहाड़ियों से होकर गुजरने वाले सात मार्ग थे, जिनमें से एक इस क्षेत्र से होकर गुजरता था। ध्यान देने वाली बात यह है कि जेएनयू परिसर के आसपास के सभी गाँवों के साथ "सराय" शब्द का प्रत्यय लगा है जैसे बेर सराय, कटवारिया सराय। इन अलग तरह के घरों को एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाया गया था। ये प्रस्तर आवास, धनी व्यापारियों के लिए सुरक्षा के साथ एक आराम घर का भी काम करते थे।

जेेएनयू प्रशासन ने 1970 के दशक के प्रारंभ में इस क्षेत्र की भूमि का अधिग्रहण किया। पर उससे कहीं पहले यह स्थान लंबे समय तक प्रसिद्ध लाल बदरपुर रेत और पत्थरों के अवैध खनन के लिए जाना जाता था। तब विश्वविद्यालय में कई स्थानों पर जमीन में गहरे गड्डे हुआ करते थे जो कि यहां होने वाली खनन गतिविधियों का जीता-जागता प्रमाण थे। इनमें से अधिकतर को खास किस्म की राख से भरकर समतल किया गया। फिर भी आज कुछ गड्डे दिख जाते हैं। वैसे यहां जेएनयू परिसर में पाषाण युग के परिष्कृत उपकरण और लगभग 500 ईसा पूर्व की अवधि के चित्रात्मक उत्कीर्णन पाए गए हैं। इन खोजों के निष्कर्ष की प्रामाणिकता के बारे में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट प्रतीक्षित है।


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