‘हम किसी रोज़ ऐसे जागें फिर नींद न आये’
इतना कह कर देश सो गया !
दिन-पर-दिन हफ्तों -पर हफ्ते ,बरस गए
आ गए जमाने नये मगर
न-सोने कि इच्छा का धनी हमारा देश
शून्य कर्तृत्व ले रहा है खर्राटे
और जगत के बटमारों के गुट
जुटे हुए हैं इस कोशिश मे नींद न खुलने पाए
कभी इस सुप्त देश की
सोये रहने कि सुविधाएँ सब हाज़िर हैं
अपना सोना बड़े काम का सिद्ध हो रहा है
बेचारे गाँधी का सपना विद्ध हो रहा है.
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