दिवेदी जी हिन्दी-साहित्य के इतिहास में युगप्रवर्तक के रूप में विख्यात हैं। इन्होंने गद्य की भाषा का परिष्कार किया और लेखकों की सुविधा के लिए व्याकरण और वर्तनी के नियम स्थिर किए। कविता में उस समय प्रायः ब्रज-भाषा का ही प्रयोग होता था। इन्होंने गद्य की भांति कविता में भी खड़ी बोली का प्रयोग किया। और, अन्य कवियों को खड़ी बोली में ही कविता करने की प्रेरणा दी। इन्हीं साहित्यिक सेवाओं के फलस्वरूप विद्वानों ने उन्हें ‘आचार्य’ पद से सम्मानित किया।
गद्य :: तरुणोंपदेश, हिन्दी कालिदास की समालोचना, वैज्ञानिक कोष, नाट्यशास्त्र, हिन्दी भाषा की उत्पत्ति, वनिता विलाप, साहित्य संदर्भ, अतीत -स्मृति, साहित्यालाप. ‘रसज्ञ रंजन’, ‘साहित्य-सीकर’, ‘साहित्य-संदर्भ’, ‘अद्भुत आलाप’, ‘संचयन’ इनके प्रसिद्ध निबंध-संग्रह हैं।
काव्य :: काव्य -मञ्जूषा, सुमन, कविता कलाप, ‘द्विवेदी-काव्यमाला’ में कविताएं संगृहित हैं।
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