वह एक दिन में कम्युनिस्ट-विरोधी नहीं हो गये थे और न एक दिन में भारत-प्रेमी। उनकी प्रज्ञा मूलतः प्रश्नाकुल थी, आलोचक नहीं। अपने इस अदम्य साहस में वह उपनिषदिक परम्परा के उत्तराधिकारी कहलाने के अधिक निकट थे, बजाय औपनिवेशिक संस्कृति की पैदावार होने के।
-गगन गिल (प्रिय राम-निर्मल वर्मा)
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