"उर्दू के समर्थक कहते हैं कि वह विशुद्ध भारतीय भाषा है और भारत के हिन्दू-मुसलमानों ने मिलकर उसे बनाया है. जवाहर लाल नेहरू ने इसी निष्ठा से उर्दू का पक्ष समर्थन करते हुए ही हिंदी को हिन्दू साम्प्रदायिकता की उपज और बनावटी भाषा मानते हैं. मैं सच कहूंगा, मुझे लगा कि यह जान-बूझकर कपट-जुआ खेल जा रहा है. रेडियो के 'हिंदुस्तानी' समाचारों में 'गेंहू' को 'गंदुम' कहा जाता था. महात्मा गांधी की तबियत आज होशियार और बश्शाश है-यह बुखारी रेडियो की भाषा थी."
-अमृतलाल नागर, हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और उपन्यासकार ("हम हिंदी का उर्दूकरण क्यों नहीं चाहते" शीर्षक निबंध, पेज १०३-१०४, साहित्य और संस्कृति)
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