History of local administration in British Delhi_दिल्ली के स्थानीय प्रशासन का आरंभिक ब्रिटिश इतिहास
0701201, दैनिक जागरण
दिल्ली के स्थानीय प्रशासन यानि नगरपालिका का इतिहास देश के समस्त नागरिक प्रशासनों में सबसे पुराना है। 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में भारतीयों की हार के बाद 1858 में दिल्ली में ईस्ट इंडिया कंपनी का राज ख़त्म हो गया। दिल्ली अंग्रेजी साम्राज्य का हिस्सा बन गई ।
दिल्ली को पंजाब सूबे में जोड़ दिया गया। दिल्ली, पंजाब के पांच डिवीजनों में से एक थी, जिसके तहत हिसार, रोहतक, गुडगांव, करनाल, अंबाला, शिमला और दिल्ली के जिले थे। 1862 में दिल्ली जिले का दिल्ली, बल्लभगढ़ और सोनीपत तहसीलों में विभाजन हुआ।
तब से नगरपालिका व्यवस्था किसी न किसी रूप में दिल्ली को मिली। 1862 में नगर सुधार अधिनियम, 1850 को पंजाब सरकार की एक अधिसूचना से नाम पर दिल्ली पर लागू किया गया और इस प्रशासन का नाम पहले देहली म्युनिसिपल कमीशन रखा गया। बाद में, यह देहली म्युनिसिपल कमेटी या दिल्ली नगर पालिका हुआ।
1863 में दिल्ली डिविजन के आयुक्त कर्नल जी.डब्ल्यू. हैमिल्टन की अध्यक्षता में दिल्ली म्यूनिसिपल कमेटी की पहली बैठक हुई। इस सभा में सात भारतीय और चार अंग्रेज सदस्यों थे।
इस तारीख के बाद राजधानी के म्युनिसिपल प्रशासन का स्पष्ट और क्रमिक रिकॉर्ड मिलता है। तब नजफगढ़ और महरौली के पुराने नगर की नगरपालिकाएं होती थीं, जिन्हें 1886 में अधिसूचित क्षेत्र के रूप में गठित किया गया।
दिल्ली के आयुक्त (कमिश्नर) कर्नल हैमिल्टन इस म्युनिसिपल कमीशन के अध्यक्ष तथा डब्ल्यू। एच. मार्शल इसके अवैतनिक सचिव थे। उस समय, इसके कुल कर्मचारियों में सुपरिटेंडेन्ट, नायब सुपरिटेंडेन्ट, जमादार, मुंशी, चपरासी और कर उगाने वाला कर्मचारी होते थे। कई बरसों तक म्युनिसिपल कमीशन में सेक्रेटरी ही प्रमुख अधिकारी होता था परंतु बाद में इस पद को इंजीनियर-सेक्रेटरी में बदल दिया गया।
1911 में तीसरे दिल्ली दरबार में अंग्रेज राजा किंग जॉर्ज ने दिल्ली को अंग्रेजी साम्राज्य की राजधानी बनाने की घोषणा की। इसके नतीजा 1912 में अलग से दिल्ली सूबे के गठन के रूप में सामने आया। इस सूबे में 773 गांव थे, जिसमें दिल्ली तहसील में 267, सोनीपत तहसील में 141 और बल्लभगढ़ तहसील में 265 गांव थे।
उस समय तक डिप्टी कमिश्नर ही इस कमेटी का प्रधान हुआ करता था और दिल्ली सूबे के समस्त आवश्यक प्रशासनिक कार्यों की देखरेख करता था। यह सेक्रेटरी सफाई, स्वास्थ्य, अर्थ सम्बन्धी के अलावा जिला मेजिस्ट्रेट भी होता था। इस तरह से पूरा प्रशासन एक सूत्र में बंधा हुआ था और सारे मुख्य विषय निर्णय के लिए डिप्टी कमिश्नर के पास भेजे जाते थे। बाद में, डिप्टी कमिश्नर एच. सी. बीडन की अध्यक्षता में प्रशासन में कुछ अन्य स्वतन्त्र विभागों की स्थापना हुई।
शाहदरा 1916 में दिल्ली सूबे में मिलाए जाने एक अधिसूचित क्षेत्र था। दिल्ली का किला भी, जो पहले छावनी था, इसी श्रेणी में रखा गया। सिविल लाइन और नई दिल्ली अपेक्षाकृत रूप में बाद में बने। इसमें सिविल लाइन को 1913 में अधिसूचित क्षेत्र घोषित किया गया।
नई दिल्ली का गठन एक दूसरी श्रेणी की नगरपालिका के रूप में फरवरी 1916 में हुआ। इस नगरपालिका को बनाने का मूल उद्देश्य नई राजधानी के निर्माण में कार्यरत असंख्य मजदूरों की सफाई से संबंधित आवश्यकताओं को पूरा करना था।
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