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दैनिक जागरण, १४ जनवरी २०१७
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दिल्ली में नागरिक कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कोतवाल की एक लंबी परंपरा रही है। मलिक उमरा फखरूद्दीन को दिल्ली का पहला कोतवाल माना जाता है। सन् 1237 ई. में 40 साल की उम्र में कोतवाल बना मलिक अपनी बुद्धिमत्ता और वफादारी के कारण दिल्ली सल्तनत के तीन सुलतानों, बलबन, कैकोबाद और कैखुसरो के दौर में कोतवाल रहा। उस समय कोतवाल का कार्यालय किला राय पिथौरा यानी आज की महरौली में होता था।
अंग्रेजों के खिलाफ सन् 1857 में देश की आजादी की पहली लड़ाई के विफल होने के साथ ही कोतवाल की संस्था का भी खात्मा हो गया। यह एक कम जानी बात है कि कि सन् 1857 की पहली लड़ाई से ठीक पहले दिल्ली के आखिरी कोतवाल गंगाधर नेहरू थे जो कि पंडित मोतीलाल नेहरू के पिता और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के दादा थे। खुद नेहरू ने अपनी आत्मकथा "मेरी कहानी" में अपने दादा गंगाधर के बारे में लिखा है कि वे अठारह सौ सत्तावन के गदर के कुछ पहले दिल्ली के कोतवाल थे।
1861 में अंग्रेजों ने कानून व्यवस्था के नाम पर भारतीयों पर निगरानी के इरादे से भारतीय पुलिस अधिनियम को लागू किया। सन् 1911 में दिल्ली अंग्रेजों की राजधानी बनी तो जरूर पर कानून व्यवस्था के हिसाब से राजधानी की पुलिस पंजाब पुलिस की ही एक इकाई बनी रही क्योंकि तब प्रशासनिक तौर पर दिल्ली पंजाब का हिस्सा थी। उसी साल दिल्ली के पहले मुख्य आयुक्त को नियुक्त किया गया और उसे पुलिस महानिरीक्षक की शक्तियां और कार्य भी सौंपे गए।
सन् 1912 के राजपत्र (गजट) के अनुसार, पूरा दिल्ली जिला सीधे तौर पर एक पुलिस उपमहानिरीक्षक, जिसका अपना मुख्यालय अंबाला में था, के नियंत्रण में था जबकि दिल्ली जिले में तैनात पुलिस बल की कमान एक पुलिस अधीक्षक और पुलिस उप अधीक्षक के पास थी। यहां के कुल पुलिस बल में दो निरीक्षक, 27 उप निरीक्षक , 110 हवलदार, 985 पैदल सिपाही और 28 सवार थे।
शहर में कानून व्यवस्था का काम ग्रामीण पुलिस के पास था, जिसकी बागडोर दो पुलिस निरीक्षकों के पास थी। इन निरीक्षकों के अपने मुख्यालय सोनीपत और बल्लभगढ़ में थे, जिसके तहत दस पुलिस थाने क्षेत्र आते थे। इसके अलावा सात बाहरी चैकियां और चार सड़क चौकियां भी थीं। दिल्ली शहर में कोतवाली, सब्जी मंडी और पहाड़गंज तीन बड़े पुलिस थाने थे जबकि सिविल लाइन्स में रिजर्व पुलिस बल, सशस्त्र रिजर्व पुलिस बल और नए रंगरूटों के रहने के लिए विशाल पुलिस बैरकें थीं।
सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने सन् 1297 में अपने प्रमुख सेनापति नसरत खां को दिल्ली का कोतवाल बनाया। पर उसके कठोर व्यवहार और आतंक के कारण सुल्तान ने उसे हटाकर मलिक उल मुल्क को कोतवाल बनाया। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने एक बार उसके बारे में कहा था कि वह वजीरात (प्रधानमंत्री पद) बनने के लायक है पर मैंने उसके जरूरत से ज्यादा मोटापे की वजह से उसे केवल दिल्ली का कोतवाल ही बनाया है।
सन् 1648 में जब मुगल बादशाह शाहजहां अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली (तब शाहजहांनाबाद) लाया तो गजनफर खान की शाहजहांनाबाद का पहला कोतवाल बनाया गया। साथ ही वह मीर-ए- आतिश (तोपखाना प्रमुख) भी था।
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