Tuesday, January 10, 2017

History of Local Administration (MCD) in British Delhi_अंग्रेजों के दौर में ऐसे बनी एमसीडी

सांध्य टाइम्स, 10/01/2017




दिल्ली के स्थानीय प्रशासन का इतिहास पुराना होने के साथ रोचक भी है। ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को छल-बल से विफल तो कर दिया पर इसका परिणाम यह हुआ कि भारत के शासन सूत्र की बागडोर व्यापारिक कंपनी ईस्ट इंडिया के हाथ से निकलकर अंग्रेज सरकार के हाथ में चली गई। 1858 में दिल्ली को पंजाब सूबे में मिला दिया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि दिल्ली, पंजाब के पांच डिवीजनों में से एक बन गई और इस डिवीजन में हिसार, रोहतक, गुडगांव, करनाल, अंबाला, शिमला और दिल्ली के जिले थे। पंजाब प्रांत के एक भाग के रूप में दिल्ली संभाग एक कमिश्नर के अधीन था, जिसका अपने सामान्य प्रशासनिक कार्यों के अतिरिक्त सिरमूर, काल्सिया, दुजाना, पटौदी और लोहारू की संरक्षित रियासतों पर भी नियंत्रण था। 



1857 के बाद अंग्रेजों ने शाहजहांनाबाद की चारदीवारी से बाहर निकलकर राजधानी के सिविल लाइंस क्षेत्र को विकसित किया। दिल्ली म्युनिसिपल कमीशन को गठित करने का मूल उद्देश्य मुख्य रूप से सिविल लाइंस क्षेत्र (सत्ता का केंद्र होने के साथ जहां पर अंग्रेजों के आभिजात्य वर्ग के घर थेे) और कुछ हद तक चारदीवारी में बसे शहर को बेहतर नागरिक सुविधाएं प्रदान करना था।


एक नई अवधारणा लगने वाली इस बात को ही रेखांकित करते हुए 1823 में गवर्नर जनरल एमहर्स्ट ने एक बार कहा था कि "स्थानीय सुधारों के लिए शहर की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए और यहां तक कि इस खर्च हो पूरा करने के लिए प्रत्यक्ष कर भी लगाए जा सकते हैं। दिल्ली में इस बात का परिणाम यह हुआ कि शहर की देखभाल की जिम्मेदारियों के वहन के लिए एक समिति गठित की गई।"



1820 में फोर्टस्कूयर की बनाई एक विस्तृत रिपोर्ट ने इसके काम को आसान कर दिया। इस रिपोर्ट में दिल्ली में लागू सीमा शुल्क और शहरी करों को सूचीबद्ध किया गया था। लेकिन इससे पहले कि इस प्रयोग का पूरी तरह क्रियान्वयन हो पाता, चार्ल्स मेटकॉफ ने इस नगर पालिका को अपनी केन्द्रित नीति से समाप्त कर दिया। चार्ल्स ट्रेवेयन ने 1833 की अपनी रिपोर्ट में शहर के करों की आलोचना करते हुए इस बात को दिल्ली के एक व्यापार केंद्र के रूप न उभरने का जिम्मेदार बताया। इसी बात से भिवानी, रेवाड़ी और शाहदरा में बाजार पनपने में मदद मिली, जहां पर और दिल्ली की तरह शहरी-कर नहीं लगाए जाते थे। अंग्रेजों ने सबसे पहले शहरी करों को बंगाल और फिर उत्तर-पश्चिमी प्रांतों में ख़त्म किया।



दिल्ली के नागरिकों के लिए उस समय नागरिक प्रशासन का मतलब एक स्थान या कोई कार्यालय न होकर एक अकेले अधिकारी से था। पर वर्ष 1860 के दशक के बाद इस स्थिति में परिवर्तन आया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अंग्रेजों ने अपने को सिविल लाइंस तक सीमित या अलग न रखते हुए शाहजहांनाबाद की चारदीवारी में बसे पुराने शहर को भी रखा थां।



दिसंबर 1862 में पंजाब सरकार के नगर सुधार अधिनियम, 1850 को दिल्ली में अधिसूचित कर दिया गया। इस तारीख के बाद म्युनिसिपल प्रशासन का, जो अब पुरानी दिल्ली के नाम से प्रसिद्ध है, स्पष्ट और क्रमिक लिखित इतिहास मौजूद है। तब से दिल्ली में नगरपालिका व्यवस्था किसी न किसी रूप में रही। 1862 में ही दिल्ली जिले का दिल्ली, बल्लभगढ़ और सोनीपत तहसीलों में विभाजन हुआ।



उल्लेखनीय है कि 1862 में दिल्ली नगर पालिका केवल 2 वर्ग मील में रहने वाले 1.21 लाख निवासियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अस्तित्व में आई। नगर पालिका फरवरी, 1863 में अस्तित्व में आई जबकि उसकी पहली बैठक 23 अप्रैल, 1863 को आयोजित हुई। इस प्रशासन का नाम पहले देहली म्युनिसिपल कमीशन था जो कि बाद में देहली म्युनिसिपल कमेटी या दिल्ली नगर पालिका पड़ा। उल्लेखनीय है कि दिल्ली का नागरिक प्रशासन देश के समस्त नागरिक प्रशासनों में सबसे पुराना है। राजधानी में समय के साथ-साथ स्थानीय निकाय का विकास हुआ। और इसी का परिणाम है कि आज देश की राजधानी में चार स्थानीय निकाय करीब 1400 वर्ग किलोमीटर में फैले क्षेत्र की लगभग डेढ़ करोड़ की जनसंख्या को नागरिक सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।



म्युनिसिपल कमिश्नर माधो प्रसाद अपनी पुस्तक (1921 में छपी) में लिखते हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय दिल्ली में पहले से ही एक तरह की नगर पालिका थी। दिल्ली के कमिश्नर को 26 अगस्त 1862 में लिखे एक पत्र में पूछा गया था कि क्या दिल्ली म्युनिसिपल कमेटी की कार्यवाही का किसी भी तरह से प्रचार किया गया और अगर प्रचार किया गया तो उसके लिए क्या तरीका अपनाया गया। डिप्टी कमिश्नर ने 15 सितंबर 1862 को दिए अपने उत्तर में इस बात का उल्लेख किया कि कार्यवाही के सारांश को एक भारतीय भाषा में 50 प्रतियां म्युनिसिपल फंड से पैसे लेकर छपवाई गई है।



वर्ष 1863 दिल्ली म्युनिसिपल कमीशन के इतिहास में एक मील का पत्थर है। इसी साल, पहली बार सार्वजनिक शौचालयों को बनाने के साथ साफ-सफाई की व्यवस्था कायम की गई। इतना ही नहीं, सदर बाजार में एक यूनानी दवाखाना खोला गया तथा नागरिकों के जन्म-मृत्यु के पंजीकरण का काम भी शुरू हुआ। 1867 में कोतवाली में एक आग बुझाने वाली गाड़ी के साथ अग्नि शमन सेवा का आरंभ हुआ।



दिल्ली में कुछ कुओं के पानी को आदमी के पीने लायक न पाए जाने के कारण 1869 में पानी मुहैया करवाने का प्रस्ताव लाया गया। जबकि पानी की गाड़ियों के माध्यम से पेयजल की आपूर्ति का काम 1871-1872 में शुरू हुआ। दिल्ली म्युनिसिपल कमीशन ने लालटेन और लैम्प पोस्ट से गलियों में रोशनी की व्यवस्था का आरंभ किया। वर्ष 1875 में पहली बार 1600 पौधे लगाए गए। इसी साल, सेवाओं का विकेन्द्रीकरण हुआ और सामुदायिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया। साफ-सफाई की गतिविधियों की निगरानी के लिए इलाकाई व्यवस्था की शुरुआत की गई। हर इलाके की निगरानी एक तीन सदस्यीय समिति करती थी। तब नजफगढ़ और महरौली के पुराने शहर की नगरपालिकाएं थीं जबकि 1886 में इनको अधिसूचित क्षेत्र के रूप में गठित किया गया।



दिल्ली के आयुक्त (कमिश्नर) कर्नल जी.डब्ल्यू. हैमिल्टन इस म्युनिसिपल कमीशन के अध्यक्ष तथा डब्ल्यू॰ एच॰ मार्शल इसके अवैतनिक मानद सचिव थे। उस समय, इसके बारह अंग्रेज और सात भारतीय सदस्य थे। भारतीय सदस्यों में लाला चूनामल, लाल महेश दास, राव उम्मेद सिंह, लाला साहिब सिंह, दीवान इमानउल्ला खान, शेख महबूब बक्श और शेख विलायत हुसैन खान थे।



तब, इसके कुल कर्मचारियों में सुपरिटेंडेन्ट, नायब सुपरिटेंडेन्ट, जमादार, मुंशी, चपरासी और कर उगाने वाला कर्मचारी होते थे। कई बरसों तक म्युनिसिपल कमीशन में सेक्रेटरी ही प्रमुख अधिकारी होता था परंतु बाद में इस पद को इंजीनियर-सेक्रेटरी में बदल दिया गया। तब तक डिप्टी कमिश्नर ही इस कमेटी का प्रधान हुआ करता था और दिल्ली प्रांत के समस्त आवश्यक प्रशासनिक कार्यों की देखरेख करता था। यह सेक्रेटरी सफाई, स्वास्थ्य, अर्थ सम्बन्धी के अलावा जिला मेजिस्ट्रेट भी होता था। इस तरह से पूरा प्रशासन एक सूत्र में बंधा हुआ था और सारे मुख्य विषय निर्णय के लिए डिप्टी कमिश्नर के पास भेजे जाते थे। बाद में, डिप्टी कमिश्नर एच. सी. बीडन की अध्यक्षता में प्रशासन में कुछ अन्य स्वतन्त्र विभागों की स्थापना हुई। 




दिल्ली जिला एक डिप्टी कमिश्नर के अधीन था। यह पदनाम मुख्य जिलाधिकारियों को गैर-रेगुलेशन प्रान्तों में मिला हुआ था। डिप्टी कमिश्नर की सहायता के लिए आठ सहायक अथवा अतिरिक्त सहायक कमिश्नर थे और प्रत्येक तहसील, तहसीलदार और नायब तहसीलदार के अधीन थी। ये अधिकारी राजस्व संबंधी काम भी देखते थे और न्यायिक कार्य भी। डिप्टी कमिश्नर पूरे जिले के लिए रजिस्ट्रार होता था और वह चार अलग-अलग शहरों में नियुक्त सब रजिस्ट्रारों के काम की देखरेख करता था। वह जिला बोर्ड और दिल्ली नगर पालिका-दोनों ही का पदेन अध्यक्ष होता था। दिल्ली, सोनीपत, बल्लभगढ़ और फरीदाबाद में नगर पालिकाएं होती थी और महरौली तथा नजफगढ़ में नोटिफाइड एरिया कमेटियां। एक जिला बोर्ड भी हुआ करता था। 




जब दिसम्बर 1911 में अंग्रेजों के तीसरे दिल्ली दरबार में सम्राट ने दिल्ली को अपने साम्राज्य की राजधानी घोषित किया तब राजधानी के नागरिक प्रशासन में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। 1912 में दिल्ली सूबा बना, जिसमें 773 गांव थे। शाहदरा 1916 में दिल्ली सूबे में मिलाए जाने एक अधिसूचित क्षेत्र था। दिल्ली का किला भी, जो पहले छावनी था, इसी श्रेणी में रखा गया। सिविल लाइन या सिविल स्टेशन और नई दिल्ली अपेक्षाकृत रूप में बाद में बने। इसमें सिविल लाइन को 1913 में अधिसूचित क्षेत्र घोषित किया गया। नई दिल्ली का गठन एक दूसरी श्रेणी की नगरपालिका के रूप में फरवरी 1916 में हुआ, जिसका मूल उद्देश्य उस बहुत बड़ी संख्या वाले मजदूरों की सफाई से संबंधित आवश्यकताओं को पूरा करना था, जो नई राजधानी के निर्माण में कार्यरत थे।


No comments:

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...