यह हिन्दू धर्म की विविधता का ही पुण्य प्रताप था कि बुद्धम् शरणम् गच्छामि के एकालाप संगीत के मध्य आदि शंकराचार्य का स्वर मुखर हुआ।
मुस्लिम सुल्तानों के हिन्दू प्रजा के इस्लाम में जबरिया मतांतरण और जज़िया वाली गुलामी लादने के बीच जीते हुए हिन्दू संतों के तेज से भक्ति की अनेक धाराएं बनी, जिनसे कर्म बेशक बदला पर धर्म का मर्म बचा रहा।
इसके पीछे इस्लाम के एकेश्वरवादी कट्टर विचार की तुलना में हिन्दू धर्म के भीतर अनेक पंथों के अस्तित्व और उनके विचारों से मजबूत समय की ढाल थी।
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