Saturday, April 1, 2017

अंग्रेजी राज और देसी रियासतों का संबंध_British Empire and princely states

दैनिक जागरण 01042017


जब एड्विंस लुटियन और हरबर्ट बेकर ने अंग्रेजों की नयी राजधानी नई दिल्ली के डिजाइन करने पर काम शुरू किया, उस समय ब्रितानी भारत में करीब 600 रजवाड़े-रियासतें थीं। इन रियासतों के शासक दिखाने के लिए तो भारतीय राजा-महाराजा थे पर असली ताकत दरबारों में मौजूद अंग्रेज रेजिडेंट के हाथ में थी। अंग्रेज सरकार के इन प्रतिनिधियों के बिना रियासतों में कुछ नहीं होता था।


इन राजाओं को अंग्रेजी राज का स्वामिभक्त बनाए रखने के लिहाज से भारत सरकार अधिनियम 1919 को शाही स्वीकृति देने के बाद 23 दिसंबर 1919 को अंग्रेज सम्राट जॉर्ज पंचम ने चैंबर ऑफ प्रिंसेस की स्थापना की घोषणा की। इस नरेन्द्र मंडल के नाम से भी जाना जाता था। 8 फरवरी 1921 को दिल्ली में चैंबर की पहली बैठक हुई। इस अवसर पर लालकिले के 'दीवान-ए-आम' में आयोजित उद्घाटन समारोह में 'ड्यूक-ऑफ़-कनाट' ने अंग्रेज राजा के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया।

चैंबर ऑफ प्रिंसेस की आंरभिक बैठक में देसी रियासतों के 120 राजप्रमुख सदस्य थे। इनमें से 108 राजा अति महत्वपूर्ण राज्यों के थे जो स्वयं ही सदस्य थे। जबकि शेष 12 सीटों के लिए अन्य 127 रियासतों में से प्रतिनिधित्व था। जबकि 327 छोटी रियासतों का चैंबर में कोई प्रतिनिधित्व नहीं था। 



चैंबर ऑफ़ प्रिंसेस का मुख्य काम रियासतों-रजवाड़ों से जुड़े विभिन्न मामलों पर अंग्रेज वाइसराय को सलाह देना था। तत्कालीन वायसराय ने चैंबर के गठन के अवसर पर कहा था कि इसका मुख्य कार्य राज्यों को प्रभावित करने वाले या रजवाड़ों के समान विषय सहित ब्रितानी हुकूमत की भलाई के लिए जरूरी मामलों पर चर्चा करना है। वैसे भी, अंग्रेज सरकार ने प्रिंसेस के चैंबर की भूमिका कार्यकारी न रखकर सलाहकार के रूप में तय की थी। 



किसी समय में विभिन्न रियासतों के सुंदर वेशभूषाओं में सजे-धजे शासकों के भरा रहने वाले हॉल का उपयोग अब संसद में सांसदों के अध्ययन कक्ष के रूप में होता है। हर साल फरवरी या मार्च में चैंबर ऑफ प्रिंसेस की बैठक कांउसिल हाउस (आज का संसद भवन) के निर्दिष्ट हॉल में होती थी। बैठक के दौरान अपने दिल्ली प्रवास में राजा-महाराजा अपने राजधानी स्थित महलों में राजपरिवारों के सदस्यों और बड़े संख्या में नौकर-चाकरों के साथ ठहरते थे। इस दौरान सामाजिक जमावड़ों के साथ राजाओं के आपस में छोटे समूहों वाली पार्टियां धूमधाम और पूरे उत्साह के साथ आयोजित की जाती थी। राजा-महाराजा अंग्रेज वायसराय से भेंट करते थे तो इसी तर्ज पर वायसराय अपने यहां या दिल्ली जिमखाना क्लब में राजपरिवारों के लिए पार्टी देता था। ऐसी पार्टियों में खानदानी बावर्चियों का बनाया विशेष भोजन और पेय परोसे जाते थे। शाम को होने वाली पार्टियों में राजपरिवारों के सदस्य और सरकारी उच्च अधिकारी मेहमान होते थे। 



चैंबर ऑफ प्रिंसेस के गठन का एक सीधा परिणाम अंग्रेजों की नई राजधानी में राजा-महाराजाओं को स्थान देने के रूप में आया। आखिर चैंबर की बैठकों में हिस्सा लेने के लिए राजधानी आने पर दिल्ली में ठहरने के लिए जगह की जरूरत थी। इस जरुरत का परिणाम था, प्रिंसेस पार्क। आज के इंडिया गेट के आस-पास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण रजवाड़ों के शासकों को महल बनाने के लिए आठ एकड़ आकार के 36 भूखंड पट्टे पर दिए गए। इस तरह, हैदराबाद, बड़ौदा,बीकानेर, पटियाला और जयपुर रियासतों को इंडिया गेट की छतरी के किंग्स वे (अब राजपथ) के चारों ओर स्थान आवंटित हुए। जबकि उनसे कम महत्व रखने वाले जैसलमेर, त्रावणकोर, धौलपुर और फरीदकोट के शासकों को केंद्रीय षट्भुज (सेंट्रल हैक्सागन) से निकलने वाली सड़कों पर निर्माण के लिए भूमि दी गई।


इसके बावजूद, लुटियन की दिल्ली के अनुरूप डिजाइन होने की शर्त भी थी। इसके लिए रजवाड़ों को अपने महलों के नक्शों को अंग्रेज सरकार से स्वीकृत करवाना पड़ता था। देश की आजादी के बाद देसी रियासतों के भारतीय संघ में विलय के साथ ही राजा-महाराजाओं के सभी महल भारत सरकार की संपत्ति बन गए। इनमें से अधिकांश पर अभी भी सरकार का स्वामित्व है, जहां केंद्रीय सरकर के विभिन्न विभागों के कार्यालय हैं जैसे धौलपुर हाउस में संघलोक सेवा आयोग का कार्यालय है जो कि देश के भावी प्रशासकों यानी आइएएस के चयन का कार्य करता है।



देश की आजादी तक कायम रहे चैंबर ऑफ प्रिंसेस (1921-1947) के चार चांसलर यानी प्रमुख हुए। ये बीकानेर के महाराज गंगा सिंह, महाराजा पटियाला सरदार भूपिंदर सिंह, नवानगर के महाराज रंजीतसिंहजी और नवानगर के ही महाराज दिग्विजयसिंहजी तथा भोपाल के नवाब हमदुल्लाह खान थे।



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