पंजाब केसरी 01042017 |
Saturday, April 1, 2017
दिल्ली नगर निगम का इतिहास_History of local administration of Delhi
अगले महीने राजधानी में तीन दिल्ली नगर निगमों के पार्षदों के के लिए चुनाव होने वाले हैं. पर आज के नागरिकों में से शायद गिनती के व्यक्तियों को ही इस बात की जानकारी होगी कि देश की राजधानी दिल्ली के नागरिक प्रशासन का एक गौरवपूर्ण इतिहास रहा है।
वैसे राजधानी में स्थानीय प्रशासन का आरंभ, अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 की पहली आजादी की लड़ाई में भारतीयों की हार और अंग्रेज़ों के राजधानी पर दोबारा अधिकार के साथ हुआ। वर्ष 1862 के लगभग स्थापित प्रशासन का पहला नाम देहली म्युनिसिपल कमीशन था जो बाद में बदलकर देहली म्युनिसिपल कमेटी या दिल्ली नगर पालिका हुआ और 7 अप्रैल 1958 से देहली म्युनिसिपल कारपोरेशन अथवा दिल्ली नगर निगम हुआ। इस तरह से, दिल्ली का नागरिक प्रशासन देश के समस्त नागरिक प्रशासनों में सबसे पुराना है।
दिल्ली नगर पालिका का लिखित इतिहास, इसकी संविधान सभा की 23 अप्रैल 1863 को हुई पहली बैठक से प्रारम्भ होता है। इस सभा में सात भारतीय और चार अंग्रेज सदस्यों थे। इसकी पहले साल की कुल आय 98,276 रूपए थी। उस समय पालिका का सर्वाधिक वेतन (साठ रूपए मासिक) पाने वाला अधिकारी सुपरिटेंडेन्ट हुआ करता था। दिल्ली के आयुक्त (कमिश्नर) कर्नल हैमिल्टन इस म्युनिसिपल कमीशन के अध्यक्ष तथा डब्ल्यू. एच. मार्शल इसके अवैतनिक सचिव हुआ करते थे। तत्कालीन दौर में इसके कुल कर्मचारियों में सुपरिटेंडेन्ट, नायब सुपरिटेंडेन्ट, जमादार, मुंशी, चपरासी और कर की उगाही करने वाला कर्मचारी होते थे। कई बरसों तक म्युनिसिपल कमीशन में सेक्रेटरी ही प्रमुख अधिकारी होता था परंतु बाद में इस पद को इंजीनियर-सेक्रेटरी में बदल दिया गया।
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