दैनिक जागरण 08042017 |
अंग्रेज वास्तुकारों की जोड़ी ने एडविन लुटियन और हरबर्ट बेकर ने ब्रितानी राजधानी नई दिल्ली के लिए जो उपयुक्त भूखंड चुना, वह पुराने शहर शाहजहांबाद के दक्षिण में स्थित एक जमीन का टुकड़ा था। इस जमीन की पश्चिमी सीमा पर, जहां एक ओर दिल्ली की रिज थी तो पूर्व में यमुना नदी। जबकि इसके मध्य में पुराने खंडहरों वाला इलाका था, जहां उस समय पर बड़े पैमाने पर खेतीबाड़ी होती थी।
लुटियन के ‘गार्डन सिटी’ की कल्पना के अनुसार, यह शानदार सरकारी इमारतों (जिसमें गर्वमेंट हाउस, सचिवालय, इंडियन वॉर मेमोरियल आर्क और प्रिंसेस पार्क के राजा-रजवाड़ों के भवन थे) की जमीन थी। इस शहर में पुराना किला जैसे प्राचीन ऐतिहासिक स्मारकों को भी शामिल करने की योजना थी। पुराने और नए स्थानों वाले इस पूरे भूखंड के सड़क मार्गों को ज्यामितीय आधार पर आपस जोड़ा जाना था। इसमें किंग्स-वे (आज का राजपथ) और क्वीन-वे (आज का जनपथ) इन सड़क मार्गों की मुख्य धुरी थे।
लेकिन एक बगीचे का आभास देने वाले शहर में, सड़क मार्गों के किनारों को एकदम खाली या पत्थरों के फर्श के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता था। इसके लिए जरूरी था कि प्रत्येक मार्ग के किनारों पर हरे-भरे वृक्ष लगाए जाए। दिल्ली के शुष्क और धूल भरे वातावरण को देखते हुए ऐसा करना और आवश्यक था क्योंकि छायादार पेड़ हरियाली और शीतलता प्रदान करने में सहायक थे। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह थी कि ऐसा करने से नए शहर की प्रभावशाली पहचान कायम होती।
जाहिर तौर पर इसके लिए एक सजग डिजाइन और योजना की आवश्यकता थी। नई दिल्ली के मार्गों में होने वाले पौधारोपण की योजना बनाने वालों में प्रमुख रूप से लुटियन, विलियम रॉबर्ट मुस्टे (बागवानी के निदेशक) और कैप्टन जॉर्ज स्विटन (नगर योजना आयोग के अध्यक्ष) थे। इन व्यक्तियों ने अपने आलावा, दूसरे शहर योजनाकारों, वनकर्मियों और बागवानीविदों की सहायता से लगाए जाने वाले वृक्षों की पहचान का काम करना शुरू किया। सड़क यातायात के बीच उपयुक्त खाली स्थानों पर न होने पर इन वृक्षों के पनपकर बड़े होने और फैलने की संभावना नहीं थी। इतना ही नहीं, इससे आसपास के भवनों को देखने के ‘दृश्य’ के भी बाधित होने का खतरा था। दिल्ली के शुष्क मौसम को देखते हुए सूखा प्रतिरोधी वृक्षों की जरूरत थी। इतना ही नहीं, सौंदर्यशास्त्र की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि इन वृक्षों का सदाबहार होना आवश्यक था।
इन व्यक्तियों के समूह ने काफी शोध और चर्चा के उपरांत इन मार्गों पर लगाने के लिए 13 प्रजातियों के वृक्षों की सूची तैयार की। इनमें से आठ प्रजातियों (जिसमें भारत में आम तौर पर पाए जाने वाले जामुन, नीम, अर्जुन, पीपल और इमली के वृक्ष थे) के पौधे सर्वाधिक लगाए गए। इसके अलावा, एक आयातित प्रजाति (अफ्रीकी सॉसेज पेड़) को भी लगाने के लिए चुना गया था।
लुटियन और मुस्टे ने नई दिल्ली में लगाये जाने वाले प्रस्तावित पौधों की किस्मों को चयनित करने के साथ ही यह योजना भी बनाई कि एक मार्ग पर ही कैसे और कहां विभिन्न प्रजातियों के वृक्ष लगाए जाएंगे।
नई दिल्ली के केंद्रीय भाग में स्थित इमारतों को बेहतरीन दिखने के लिए कैसे वृक्षों को एक साथ समूह में या अलग-अलग लगाने की संभावना का भी खास ध्यान रखा गया।
नई दिल्ली के केंद्रीय भाग सहित आस-पास के इलाके में पेड़ों को लगाने की योजना पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया। लुटियन और मुस्टे ने केंद्रीय भाग की इमारतों की विशेषता को दर्शाने वाली समरूपता को कायम रखते हुए, इस क्षेत्र के रास्तों में केवल एक प्रजाति (जामुन) के पौधों को लगाने की बात सुनिश्चित की।
इसी तरह, गर्वमेंट हाउस (आज का राष्ट्रपति भवन), सचिवालय (आज का नार्थ ब्लॉक-साउथ ब्लॉक), और न्यायालयों (आज का हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट) जैसे महत्वपूर्ण सरकारी भवनों तक समान प्रजातियों के पेड़ों के लगने और उनके बड़े होने की बात पर भी ध्यान दिया गया।
इतना ही नहीं, बड़े और पनपने वाले वृक्षों की प्रजातियों के पौधों को महत्वपूर्ण भवनों की ओर जाने वाले रास्तों पर लगाया गया। जबकि तत्कालीन सरकारी अंग्रेज़ अधिकारियों के आवास के लिए बने बंगलों की तरफ जाने वाली सड़कों पर दूसरी तरह के पेड़ लगाए गए। गार्डन सिटी के प्रभाव को बढ़ाने और एक क्षेत्र से दूसरे बगल वाले क्षेत्र के बीच प्राकृतिक निरंतरता को बनाए रखने के उद्देश्य से लिए अक्सर चौराहों या सड़कों के आपस में मिलने वाले स्थानों पर समान प्रजाति के ही वृक्ष लगाए गए।
इतना ही नहीं, बड़े और पनपने वाले वृक्षों की प्रजातियों के पौधों को महत्वपूर्ण भवनों की ओर जाने वाले रास्तों पर लगाया गया। जबकि तत्कालीन सरकारी अंग्रेज़ अधिकारियों के आवास के लिए बने बंगलों की तरफ जाने वाली सड़कों पर दूसरी तरह के पेड़ लगाए गए। गार्डन सिटी के प्रभाव को बढ़ाने और एक क्षेत्र से दूसरे बगल वाले क्षेत्र के बीच प्राकृतिक निरंतरता को बनाए रखने के उद्देश्य से लिए अक्सर चौराहों या सड़कों के आपस में मिलने वाले स्थानों पर समान प्रजाति के ही वृक्ष लगाए गए।
वर्ष 1919-20 की अवधि में सड़क मार्गों के बीच पौधारोपण का काम शुरू हुआ और फिर अगले पांच साल तक पेड़ लगाए गए। गवर्नमेंट हाउस और सचिवालय के उद्घाटन (1931) के समय तक लुटियन और मुस्टे की योजनाओं के अनुरूप ये पौधे बड़े होकर अच्छे-खासे पेड़ों का रूप ले चुके थे। आज एक शताब्दी के लगभग समय होने के बाद भी नई दिल्ली की सड़कों के किनारे लगाए गए वृक्षों के कारण ही देश के राजधानी की गिनती दुनिया के सर्वाधिक सुंदर भूदृश्यों वाले शहरों में होती है।
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