Saturday, September 22, 2018

RSS_in view of Mahatma Gandhi to Mohan Bhagwat_संघ दृष्टि: गांधी से लेकर भागवत तक




राष्ट्रीय  स्वयंसेवक संघ के वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत ने दिल्ली मेंभविष्य का भारत-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण विषय पर तीन दिवसीय (17-19 सितंबर 2018) कार्यक्रम में अपने संगठन की रीति-नीति और कार्य के सिद्वांतस्वरूपऔर अवधारणा की खुली चर्चा की। यह देश के इतिहास में एक संयोग ही कहा जा सकता है कि आज से ठीक 71 साल पहले महात्मा गांधी ने 16 सितंबर 1947 को नई दिल्ली नगर पालिका परिषद् में स्थित आज की वाल्मीकि बस्ती में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की रैली में उसके सदस्यों से अपनी मन की बात कही थी। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से पूरे १०० खण्डों के महात्मा गाँधी वांग्मय में यह पूरा वर्णन (खंड ९६) सविस्तार से प्रकाशित है   


गाँधी ने कहा कि वे बरसों पहले वर्धा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविर में गए थे जब उसके संस्थापक श्री हेडगेवार (डाक्टर केशव बलिराम हेडगेवार) जीवित थे। दिवंगत श्री जमनालाल बजाज उन्हें शिविर में ले गए थे और वे संघ के अनुशासनकिसी भी तरह की छुआछूत न होने और बेहद सादगी से काफी प्रभावित हुए थे। तब से संघ का विस्तार हुआ है। गाँधी का मानता था कि जिस संगठन में सेवा का लक्ष्य और सच्चा त्यागभाव रहता हैउसकी ताकत बढ़ती ही है। पर सही मायने में उपयोगी होने के लिए आत्मोसर्ग के साथ लक्ष्य के प्रति शुचिता और सच्चे ज्ञान का समावेष होना आवश्यक है। इन दोनों के बिना त्याग समाज के लिए दुखदायी हो सकता है। 

आरंभ में जो प्रार्थना गाई गई, जिसमें भारत माताहिंदू संस्कृति और हिंदू धर्म का गुणगान था। उन्होंने (गांधी) दावा किया कि वे सनातनी हिंदू हैं। उन्होंने सनातन शब्द के मूल अर्थ बताया। हिंदू शब्द का सच्चा मूल क्या हैयह बहुत ही कम लोग जानते हैं। यह नाम हमें दूसरों ने दिया और हमने उसे अपना लिया। हिंदू धर्म ने दुनिया के सभी मतों की अच्छी चीजों को समाहित (अपने में पचा लेने की ताकत) किया है और इस अर्थ में यह एक विशिष्ट महजब नहीं है। इसी कारण उसका इस्लाम या उसके अनुनायियों के कोई झगड़ा नहीं हो सकता जो कि दुर्भाग्य से आज का मसला है।

जब अस्पृश्यता का विष हिंदू धर्म में प्रविष्ट हुआतो उसका पतन शुरू हुआ। एक बात निश्चित थी कि वे (गांधी) सार्वजनिक रूप से घोषित कर रहे थे कि अगर अस्पृश्यता कायम रहेगी तो हिंदू धर्म को मरना होगा। इसी प्रकारअगर हिंदुओं का यह मानना है कि भारत में हिंदुओं को छोड़कर किसी और के लिए कोई स्थान नहीं है और यदि गैर हिंदुओंविशेष रूप से मुस्लिम अगर यहां रहने की इच्छा रखते हैंतो उन्हें हिंदुओं के दासों के रूप में रहना होगा तो ऐसा विचार रखकर वे हिंदू धर्म को समाप्त देंगे। इसी तरह से, यदि पाकिस्तान यह मानता है कि पाकिस्तान में केवल मुस्लिमों को ही रहने का हक है और गैर-मुसलमानों को वहां पीड़ित और उनके गुलामों की तरह वहां रहना पड़ेगातो यह भारत में इस्लाम के लिए मौत की घंटी  होगी।

वे (गांधी) कुछ दिन पहले उनके (संघ) गुरूजी (संघ के दूसरे सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरूजी) से मिले थे। उन्होंने गुरूजी से कलकत्ता और दिल्ली में संघ के विषय में उन्हें मिली शिकायतों के बारे में बताया। गुरूजी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वैसे तो वे संघ के प्रत्येक सदस्य के उचित आचरण की बात सुनिश्चित नहीं कर सकते पर इतना निश्चित है कि संघ की नीति पूरी तरह से हिंदुओं और हिंदू धर्म की सेवा करना है और वह भी किसी दूसरे को हानि पहुंचाकर कतई नहीं। संघ आक्रमकता में विश्वास नहीं रखता। वह आत्मरक्षा की कला सिखाता है। उसने कभी प्रतिशोध की बात नहीं सिखायी।


संघ एक संगठितअनुशासित संगठन था जिसकी शक्ति का प्रयोग भारत के हित में या अहित में हो सकता था। उन्हें (गाँधी) नहीं पता कि क्या संघ के खिलाफ लगाए गए आरोपों में कोई सत्यता थी या नहीं। अपने समरूप व्यवहार से आरोपों को निराधार साबित करने का दायित्व संघ का था।

1947 में हुए भारत विभाजन के बाद दिल्ली में पाकिस्तान से सर्वाधिक हिंदू-सिख शरणार्थियों ने अपना डेरा जमाया। इतना ही नहीं, राजधानी भी सांप्रदायिक दंगों की मार से अछूती नहीं थी। ऐसी विपरीत परिस्थिति में महात्मा गांधी राजधानी में शांति-सद्भाव कायम करने के प्रयासों में लगे थे। 


11 सिंतबर 1947 को गांधी की ओर अखबारों को जारी एक प्रेस वक्तव्य के अनुसार, आज राजकुमारी अमृतकौर और डाॅक्टर सुशीला नैयर मुझे इरविन अस्पताल ले गई थी। वहां पर जात वगैरह का कोई भेदभाव रखे बगैर सिर्फ जख्मी लोगों का ही इलाज किया जाता है। मरीजों में एक बच्चा था, जिसकी उमर मुश्किल से पांच बरस की होगी। गोली लगने से उसके बदन पर घाव हो गया था। डाक्टर और नर्सों पर काम का भारी बोझ था, वहां मुसलमान मरीजों की तादाद ज्यादा थी, क्योंकि हिंदू और सिख मरीजों को दूसरे अस्पतालों में भेज दिया गया था। 


राजकुमारी से मुझे पता चला कि प्रयास शरणार्थी कैंपों में पाखाने साफ करने के लिए सफाई कर्मियों को भेजना करीब-करीब नामुमकिन है। इससे हैजे-जैसी छूत की बीमारी के फैलने का डर है। मेरी राय में शरणार्थियों को अपने-अपने कैपों में खुद सफाई करनी चाहिए। पाखाने भी उन्हें साफ करने चाहिए और कैंप-व्यवस्था की स्वीकृति से कुछ उपयोगी काम करना चाहिए। सिर्फ उन लोगों को छोड़कर, जो शारीरिक मेहनत नहीं कर सकते, बाकी सब पर यह नियम लागू होता है। सारे शरणार्थी-कैंप सफाई, सादगी और मेहनत के नमूने होने चाहिए। उल्लेखनीय है कि यह वक्तव्य "हरिजन" अखबार के 21 सिंतबर 1947 के अंक में भी प्रकाशित हुआ था।

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