Saturday, September 15, 2018
Delhi_Telephone_दिल्ली में टेलीफोन
19 वीं शताब्दी में मीडिया क्रांति के हिसाब से टेलीग्राफ के बाद टेलीफोन दूसरा बड़ा अविष्कार था। अमेरिका में जहां टेलीफोन के अविष्कार के तुरंत बाद कम समय में ही उसे पूरी तरह अपना लिया गया वही यूरोप में आम समाज में निजी तौर पर टेलीफोन को लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिखा। खासकर अंग्रेजों के प्रभु वर्ग में टेलीफोन को घरेलू संचार का उपकरण भर माना गया। अंग्रेज आभिजात्य वर्ग के इस नजरिए का असर अंग्रेजी उपनिवेशों सहित भारत पर भी पड़ा। इसी पृष्ठभूमि के चलते भारत की अंग्रेज सरकार ने टेलीफोन का केवल प्रशासनिक और सैनिक नियंत्रण की जरूरतों के साधन के रूप में सीमित विस्तार किया।
बंगाल चैम्बर आॅफ काॅमर्स के दबाव में वर्ष 1881 में ब्रिटिश भारत में टेलीफोन की शुरूआत हुई। टेलीग्राफ की तरह, सरकार ही टेलीफोन की भी नीति नियंता थी। वर्ष 1932-33 भारतीय डाक और टेलीग्राफ विभाग की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ऊपरी हिस्से के प्रमुख शहर टेलीफोन ट्रंक लाइनों से जुड़े थे पर वह इस बात का भी उल्लेख करती है कि 1932 के अंत तक ब्रिटिश भारत में भारतीय उपमहाद्वीप को शेष विश्व से जोड़ने वाली टेलीफोन लाइनें नहीं थी। 1930 के आरंभ में कलकत्ता और मुंबई टेलीफोन की सीधी ट्रंक लाइन से आपस में जुड़ गए। जबकि इसी समय में वाया लखनऊ और दिल्ली में औसतन हर महीने की टेलीफोन काॅलों की संख्या 180 से बढ़कर 1250 हो गई।
1911 में अंग्रेजों ने अपनी राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने का निर्णय किया तो उन्हें नई राजधानी में टेलीफोन की अनिवार्यता महसूस हुई। टेलीफोन ने नई दिल्ली को एक आदर्श शहर के रूप में स्थापित करने की अंग्रेजों की योजना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
इस तरह, 1911 के दिल्ली दरबार के समय दिल्ली में प्रथम नियमित टेलीफोन सेवा शुरू हुई थी। 1920 के अंत तक लगभग 800 हस्तचालित टेलीफोन राजधानी में काम कर रहे थे। उसी वर्ष इन्हें स्वचालित पद्वति में बदलने का निश्चय किया गया। यह परिवर्तन 1925 में तीन स्वचालित टेलीफोन केंद्रों की स्थापना के साथ पूरा हुआ जिनमें रिले स्वचालित पद्वति के नवीनतम उपकरण लगे हुए थे। एक एक्सचेंज सचिवालय में, 1500 लाईनों वाला एक अन्य एक्सचेंज लोथियन रोड पर और 300 लाइनों वाला एक और एक्सचेंज दिल्ली छावनी में लगाया गया।
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