Saturday, September 1, 2018

Map of Natural History of Delhi_नक्शे में समाया प्राकृतिक इतिहास

01092018_दैनिक जागरण 



आज के समय में महानगर की विकास योजना एक प्रमुख चुनौती है। फैलती मानवीय बसावट के कारण दिल्ली के प्राकृतिक स्थलों का संरक्षण एक चुनौती बन गया है। लैंडस्केप फाउंडेशन इंडिया ने "दिल्लीः प्रकृति की गोद में बसी राजधानी" शीर्षक से प्रकाशित शोध-दस्तावेज को एक मानचित्र फोल्डर के रूप में प्रस्तुत किया है। इस दस्तावेज में पिछले बारह सौ साल में दिल्ली के प्राकृतिक इतिहास और यहां पनपी विभिन्न संस्कृतियों के प्रकृति से बदलते रिश्तों पर प्रकाश डाला है। इस मानचित्र में पर्यावरण के लिहाज से महत्वपूर्ण, दिल्ली के मौजूदा इलाकों, जंगलों, नदी, उद्यानों और जल संरचनाओं का विवरण दिया गया है। आखिरकार किसी भी शहर का ऐतिहासिक चरित्र उसके संरक्षित विरासत स्थलों से ही उजागर होता है।

इसमें दिल्ली के प्रारंभिक शहरों-लालकोट, देहली-ए-कुना, महरौली, जहांपनाह, तुगलकाबाद, दीनपनाह, फिरोजाबाद और शाहजहांनाबाद तक से लेकर अंग्रेजों तक के दौर की प्राकृतिक यात्रा का संक्षिप्त रूप से विवरण दिया गया है। उल्लेखनीय है कि रिज पर सुरक्षित तरीके से बसी पहले की अधिकांश बस्तियां- लालकोट, देहली-ए-कुना, महरौली, जहांपनाह, तुगलकाबाद-शहर के दक्षिण में स्थित थी।

दिल्ली के दो प्रमुख प्राकृतिक स्थलों, 'रिज' और 'यमुना' ने यहां की बस्तियों, शाही स्थलों और शहर की सामाजिक और आर्थिक संस्कृति के उन्नयन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

राजधानी के पर्यावरण संवेदी इलाकों में जंगल के हिसाब से उत्तरी रिज, मध्य रिज, दक्षिण मध्य रिज और दक्षिणी रिज आती हैं, जहां अब उत्खनन प्रतिबंधित होने के कारण इस क्षेत्र के अधिकतम भाग की भूमि बंजर है। वही शहर में, सुरक्षित जंगलों (वन क्षेत्रों) में रजोकरी, मितरांव, मुखमेलपुर, घुम्मनहेड़ा और बवाना सम्मिलित हैं। शहर के बाहरी इलाकों में कुछ वन क्षेत्रों को खेतों में परिवर्तित कर दिया गया।

नक्शे के अनुसार, यमुना नदी पल्ला गांव से दिल्ली में प्रवेश करके 26 किलोमीटर की दूरी तय करती हुई वजीराबाद बांध पहुंचती है। फिर यह नदी राजधानी में 22 किलोमीटर बहकर ओखला बैराज से होते हुए और चार किलोमीटर बहकर जैतपुर गांव से उत्तर प्रदेश में चली जाती है। यमुना के बाढ़ के मैदानों में भूजल वाले कई जलाशय और पर्यावरण के लिहाज से महत्वपूर्ण विशेषताएं मौजूद हैं। ये मैदान तरह-तरह के भू-क्षेत्रीय चरित्र प्रदर्शित करते हैं, जैसे-बालुका विस्तार, प्राकृतिक वनस्पतियां, दलदली भूमि और कृषि भूमि। यमुना पर कई बैराजों के निर्माण के कारण नदी में गर्मी के दिनों में पानी नहीं रह जाता। मौजूदा समय में 20 से अधिक नाले अपना गंदा पानी विभिन्न स्थानों पर नदी में उड़ेल रहे हैं। यमुना बाढ़ के मैदानों को किसी भी तरह के निर्माण, अतिक्रमण और रेत-खनन की गतिविधियों से बचाने की सख्त आवश्यकता है।


वर्ष 1947 में भारत की आजादी के बाद दिल्ली शरणार्थियों का एक शहर बन गया। पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए हिन्दू-सिख नागरिकों को बसाने के लिए यहां कई सारी बस्तियां अस्तित्व में आईं। दिल्ली इस तरह एक विशाल शहर बन गया और जनसंख्या घनत्व का भारी दबाव यहां के प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ा।परिणाम स्वरूप रिज अंधाधुंध शहरीकरण का शिकार बनकर कर धीरे-धीरे खंडित हो गई। नियम-कानून के बावजूद नदी और रिज के साथ शहर का शोषण वाला जो रिश्ता धीरे-धीरे विकसित हुआ, वह अब तक कायम है। ऐसे में, शहर की प्राकृतिक संपदा की फिर से खोज करने और भावी पीढ़ी के लिए एक पर्यावरण संवेदी, व रहने योग्य वातावरण तैयार करने के लिए प्राकृतिक संपदाओं को बचाने के लिए व्यावहारिक उपाय करने की तत्काल आवश्यकता है।



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