Monday, September 10, 2018

Delhi Ridge_short introduction_राजधानी की खोज_दिल्ली रिज की कहानी



दिल्ली के दो प्रमुख प्राकृतिक स्थलों, रिज और यमुना नदी ने उसकी बसावट के विकास की दशा-दिशा तय करने में निर्णायक भूमिका अदा की है। बीती शताब्दियों में रिज और यमुना नदी के बीच के त्रिभुज क्षेत्र में विभिन्न राजवंश पनपे, जिसकी पुष्टि यहां मिले पुरातात्त्विक अवशेषों से होती है।

अरावली पर्वत श्रृंखला की मेवाती शाखा का अंतिम छोर को राजधानी में रिज कहा जाता है। दिल्ली की सबसे प्रमुख स्थलाकृतिक विशेषता वाली ये पहाड़ियां, वर्षा जल की अवस्थिति को सर्वाधिक प्रभावित करती हैं।

यहां के निवासियों को सदियों से गर्मी-लू से बचाने वाली रिज का जंगल आज तीन हिस्सों-उत्तरी रिज, मध्य रिज, दक्षिण मध्य रिज और दक्षिणी रिज में बंट गया है। एक समय में, रिज का फैलाव लगभग 15 प्रतिशत जमीन पर था। जबकि आज यहां की ज्यादातर जमीन अति खनन के कारण बंजर हो चुकी है जहां कीकर, करील और बेर सरीखे कांटेदार-झाड़ी वाली वनस्पति ही उगती है।




दक्षिणी दिल्ली से आरंभ होकर रिज की पहाड़ियां, उत्तर पूर्व की दिशा में बढ़ते हुए यमुना नदी पर जाकर समाप्त होती है। दिल्ली को उत्तर पश्चिम और पश्चिम दिशा में घेरती रिज मानो राजधानी की सुरक्षा की प्राकृतिक प्राचीर है। रिज की एक शाखा भाटी माइंस के पास मुख्य श्रृंखला से अलग होकर उत्तर पूर्वी दिशा में अनंगपुर तक वक्र आकार बढ़ती हुई दोबारा मुख्य श्रृंखला से मिल जाती है। भाटी माइंस के पास रिज की ऊंचाई सबसे अधिम 1045 फुट है।

यह दुखद है कि रिज को दिल्ली के बेतहाशा शहरीकरण के कारण हुए शोषण का मूल्य अपने मूल स्वरूप के विखंडन के रूप में चुकानी पड़ी है। एक समय में यह पहाड़ियों की एक विशिष्ट श्रृंखला थी। आज के वसंत विहार में मुरादाबाद पहाड़ी, मध्य दिल्ली में पहाड़गंज और पहाड़ी धीरज, राष्ट्रपति भवन की रायसीना पहाड़ी और जामा मस्जिद का आधार भोजला पहाड़ी सहित आनंद पर्वत की स्मृति ही शेष है।




14 वीं शताब्दी में रिज एक घना जंगल होती थी, जिसे अंग्रेजों ने काटकर बाग-बगीचों में बदला। मध्यकालीन दौर में जंगली जानवरों के शिकार के लिए जहान-नुमा (यानी दुनिया की तस्वीर, जिसका नाम बाद में कमला नेहरू रिज रखा गया) रिज के जंगल का क्षेत्र, पालम से मालचा तक दो हिस्सों में बंटा हुआ था।

अंग्रेज सैनिक सर्वेक्षक एफ. एस. व्हाईट का बनाया “1807 का दिल्ली के परिवेश” शीर्षक वाले मानचित्र में नीले रंग से नदियों और धाराओं का तो छायांकन चिन्ह से रिज और पहाड़ियों की उपस्थिति को बताया गया है। जबकि “दिल्ली का घेराबंदी” (1857) शीर्षक वाला श्वेत-श्याम सैन्य मानचित्र, अँग्रेजी सैन्य व्यवस्था के साथ-साथ दिल्ली रिज की स्थलाकृति को भी दर्शाता है।




जट्टा-जैन-नेउबाउर की पुस्तक “वाटर डिजाइन, इनवायरमेंट एंड हिस्ट्रिज” के अनुसार, दिल्ली में पानी की चार प्रमुख धाराएं थी। इनमें से एक हौजखास तालाब में पहुंचती थी, कुशक नाला दक्षिणपूर्व दिल्ली को सिंचित करता था, मध्य रिज की पहाड़ी धाराएं थीं और अंतिम घुमावदार धाराएं थीं, जिससे लोदी मकबरे के बागों और गांवों को पानी पहुँचता था। ये सभी अंग्रेजों के अपनी राजधानी नई दिल्ली के निर्माण के साथ खत्म हो गईं।

1991 में "कल्पवृक्ष" नामक एक गैर सरकारी संगठन ने "द दिल्ली रिज फाॅरेस्ट, डिकलाइन एंड कन्जरवेशन" नामक एक पुस्तिका प्रकाशित की। जिसमें राजधानी में कुल 444 सूचीबद्ध पक्षियों में से लगभग 200 प्रजातियां दिल्ली रिज से थी। उल्लेखनीय है कि हजारों की संख्या में प्रवासी-स्थानीय प्रजातियों के पक्षी दिल्ली रिज में आकर्षित होकर आते हैं।



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