मेरे लिए मेरा राम सीता पति दशरथ नन्दन कहलाते हुए भी वह सर्वशक्तिमान ईश्वर ही हैं जिसका नाम हृदय में होने के मानसिक नैतिक ओर भौतिक सब दुखों का नाश हो जाता है। राम नाम समस्त लोगों का शर्तिया इलाज है। फिर चाहे वे शारीरिक, मानसिक या आध्यात्मिक हों। राम नाम ईश्वर के कई नामों में से ही एक है। गांधी जी कहते हैं रामराज्य-स्वराज्य की परिसीमा है, राम ने एक जन की बात सुनकर प्रजा को संतुष्ट करने के लिए प्राणों के समान प्रिय जगदम्बा सती शिरोमणि जगदम्बा मूर्ति सीता जी का त्याग किया। राम ने दुष्टों के साथ भी न्याय किया उन्होंने सत्यपालन के लिये राजपाट छोड़कर वनवास भोगा ओर संसार के तमाम राजाओं को उच्चकोटि के सदाचार पालन का दार्शनिक पाठ पढ़ाया। राम ने अखण्ड एक पत्निव्रत का पालन करके राजा प्रजा का है यह दिखा दिया कि, गृहस्थ आश्रम में भी संयम धर्म का पालन किस तरह किया जा सकता है। उन्होंने राज्यासन को सुशोभित करके राज्य इति को लोकप्रिय बनाकर यह सिद्ध कर दिया कि रामराज्य स्वराज्य की परिसीमा है। राजा को लोकमत जानने के लिए आज के आधे अधूरे साधनों की जरूरत कभी न थी राजा प्रजा मत को आंख के इशारे से समझ लेता था प्रजा राम राज्य में आनन्द सागर में हिलोरे लेती थी। ऐसा रामराज्य आज भी हो सकता है। राम का वंश लुप्त नहीं हुआ है।
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