ठक्कर फेरू श्रीमाल वंश के धाधिया गोत्रीय श्री कालिय के पुत्र चंद के पुत्र थे। ये मूल रूप से कन्नाणा निवासी थे फिर राजकार्य से दिल्ली में भी रहने लगे थे। शाही खजाने के रत्नों के अनुभव के आधार पर जिस प्रकार उन्होंने प्राकृत भाषा में "रत्न परीक्षा" की रचना की उसी प्रकार "ढिल्लिय टंकसाल कज्जठिए" अर्थात् दिल्ली टंकसाल के गर्वनर के पद पर रहकर प्राचीन अर्वाचीन सभी मुद्राओं का अनुभव प्राप्त कर प्राकृत में ही "द्रव्य परीक्षा" लिखी। ठक्कर फेरू ने अपने भाई और पुत्र, जिसका नाम हेमपाल था, के ज्ञानार्थ इसकी रचना 1375 में दिल्ली में की थी। इस रचना में भाई का उल्लेख तो है पर नाम नहीं लिखा है।
"द्रव्य परीक्षा" में ठक्कर फेरू ने दिल्ली की टकसाल अधिकारी के रूप हुए अपने अनुभवों को संचित किया है। इसकी प्रारंभिक तीन गाथाओं में पहली में महालक्ष्मी को नमस्कार-मंगलाचरण, दूसरी व तीसरी में दिल्ली की टकसाल के अधिकारी के रूप में रहकर भ्राता और पुत्र के लिए इस ग्रन्थ की रचना का संकल्प करते हुए चौथी गाथा में उसके पहले प्रकरण में चासनी का दूसरे में स्वर्ण-रौप्य शोधने का तीसरे में मूल्य और चौथे में सर्व प्रकार की मुद्राओं का वर्णन करूंगा लिखा है। गाथा 5 से 45 तक इसी तरह विविध प्रक्रियाएं वर्णित हैं।
उसने "द्रव्य परीक्षा" ग्रन्थ का निर्माण 1375 में किया। कवि ने स्वयं प्रारंभिक दूसरी गाथा में "ढिल्लिय टंकसाल कज्जठिए" वाक्य द्वारा इसे व्यक्त किया है। द्रव्य परीक्षा की गाथा 139 में ठक्कर फेरू ने लिखा है कि अब मैं राजबन्दिछोड़ विरूद वाले सुलतान कुतुबुद्दीन की नाना प्रकार की चौरस व गोल मुद्राओं का मोल तोल कहता हूँ।
इस ग्रन्थ में चार अध्यायों में 149 गाथा हैं। एक से चार तक मंगलाचरण है। तत्पश्चात चासनी, चासनी शोध विधि, उपादान धातुओं में सीसा, चांदी, सोना आदि की चासनी, मिश्रदल शोधन, रौप्यवनमालिका, कनक वनमालिका, स्वर्ण व्यवहार, ह्नास्य, मौल्य, तौल आदि धातु की पूर्व प्रक्रिया का वर्णन 50 गाथा तक किया गया है। इसके बाद मुद्राप्रकरण प्रारम्भ होता है।
मुद्रा प्रकरण में ठक्कर फेरू ने तत्कालीन प्राप्य सैकड़ों प्रकार की रौप्य मुद्रा, स्वर्ण मुद्रा, त्रिधातु-मिश्रित-मुद्रा, द्विधातु मुद्रा, खुरासानी मुद्रा, अठनारी मुद्रा, गूर्जरी मुद्रा, मालवी मुद्रा, नलपुर मुद्रा, चंदेरिकापुर मुद्रा, जालंधरी मुद्रा, और दिल्ली मुद्रा में पहले तोमर राजाओं की और बाद में 55 प्रकार की तत्कालीन मुसलमानी मुद्राओं का स्वरूप देकर अलाउद्दीन सुलतान आदि की विविध मुद्राओं का वर्णन किया है। फिर सोना, चांदी और तांबे की अनेक मुद्राओं का स्वरूप बताया गया है।
111वीं गाथा में दिल्ली के तोमर राजपूत राजाओं की चार प्रकार की मुद्राओं का वर्णन है। ये दिल्ली के अंतिम हिंदू राजा थे जिनके उत्तराधिकारी पृथ्वीराज चौहान के पश्चात मुसलमानी सल्तनत का अधिकार हो गया था। ये मुद्राएं अनंगपलाहे, मदनपलाहे पिथउपलाहे और चाहड़पलाहे चार प्रकार की थीं। दुर्भाग्य की बात है कि इन राजाओं के सम्बन्ध में भारतीय इतिहास अब तक मौन-सा है। गाथा 112 से 133 तक मुसलमानी शासन में वर्णित मुद्राओं का वर्णन है। ये विविध प्रकार की और नाना तोल-मोल की थीं।
गाथा 134 से 136 तक ठक्कर फेरू ने अपने समय के सुल्तान अलाउद्दीन की मुद्राओं का वर्णन करते हुए बतलाया है कि उसकी छगाणी मुद्राएं दो प्रकार की व इगाणी भी दो प्रकार की है। इगानी मुद्रा में 95 टांक तांबा और 5 टांक चांदी एक सौ मुद्राओं में है। वह एक ही प्रकार की है और राजदरबार में तथा सार्वजनिक व्यवहार में इसी का प्रचलन है।
"द्रव्य परीक्षा" को केवल भारतीय साहित्य में ही नहीं विश्व साहित्य में भी महत्वपूर्ण माना जाता सकता है। प्राचीन मुद्रा-सिक्कों के सम्बन्ध में यत्र-तत्र स्फुट वर्णन प्राचीन साहित्य में भले ही पाये जाएं पर सात सौ वर्ष पूर्व स्वतंत्र रूप से रचित इस पुस्तक का अपना विशिष्ट महत्व है।
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