मोहनदास करमचंद गांधी दिल्ली में पहली बार वर्ष 1915 में आए थे। वे अपने पहले दिल्ली प्रवास के दौरान सेंट स्टीफंस कॉलेज के पहले भारतीय प्रिंसिपल सुशील कुमार रूद्र के कश्मीरी गेट स्थित आवास में ठहरे थे। इस प्रवास के दौरान गांधी ने 13 अप्रैल को कॉलेज के छात्रों को संबोधित किया था। गांधी ने कहा कि प्रिंसिपल से पहले ही यह बात सुनिश्चित करके कि कॉलेज का यूरोपीय स्टॉफ यहां के लोगों की भाषा समझता है, हिंदी में बोलने का निर्णय लिया है। उन्हें यह बात जानकर ख़ुशी हुई कि यूरोपीय स्टॉफ यहां की भाषा का जानकार है। उन्होंने छात्रों को कहा कि मैं आपको यह बात समझाना चाहूंगा कि आप अपने शिक्षकों का अनुसरण करें और अपने कॉलेज के "ध्येय वाक्य, सत्य के प्रति समर्पित" को ईमानदारी के साथ अपने जीवन में उतारें। इस तरह से आप अपनी मातृभूमि की सेवा के लिए पूरी तरह सुयोग्य साबित होंगे। उन्होंने कहा कि काफी बरस पहले वह अपने गुरू गोखले (गोपाल कृष्ण गोखले) से मिले थे तब उन्होंने यह बात महसूस की थी कि उन्हें राजनीति के क्षेत्र में अपना गुरू मिल गया है और तब से उन्होंने पूरी विनीत भाव और ईमानदारी से उनका अनुसरण करने की कोशिश की है।
फिर गाँधी, दिल्ली में 23 नवंबर, 1919 को आयोजित प्रथम अखिल भारतीय खिलाफत आंदोलन में उपस्थित हुए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हिन्दू-मुसलमानों के पारस्परिक सहयोग से केवल खिलाफत ही पैदा न की जाए, अपितु अन्य शिकायतों को भी दूर किया जाये। उन्होंने सम्मेलन में पहली बार असहयोग आंदोलन की अपनी योजना और क्रिया विधि प्रस्तावित की। अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करने, अंग्रेज सरकार से असहयोग करने और विदेशी लोगों को भारतीय लोगों की शिकायतों के प्रति प्रबुद्ध करने के लिए इंग्लैंड (और यदि आवश्यक हो तो अमेरिका) में प्रतिनिधि भेजने के प्रस्ताव पारित किए गए। यह उल्लेख दिलचस्प है कि पहले सत्याग्रह की योजना सुशील रूद्र के दिल्ली स्थित घर में गांधी के ठहराव के दौरान बनाई गयी।
गाँधी के नेतृत्व में दिल्ली खिलाफत आंदोलन का महत्वपूर्ण केन्द्र बन गयी। दिल्ली में असहयोग आंदोलन में शामिल होने के कारण हकीम अजमल खां को छोड़कर कांग्रेस के सभी प्रमुख नेता डाक्टर अंसारी, शंकर लाल, आसफ अली, देशबन्धु गुप्ता को जेल में डाल दिया गया। दिल्ली में 11 और 15 जुलाई के बीच हिन्दू और मुसलमानों में भयंकर संघर्ष हुआ, जिसके फलस्वरूप बहुत से व्यक्ति घायल हुए। सांप्रदायिक उन्माद के प्रति दुखी होकर गांधी ने 21 दिन का उपवास (18 सिंतबर) "आत्मशुद्धि" ( उन्होंने इसे यही संज्ञा दी) के उद्देश्य से किया। अंग्रेज़ पादरी और स्टीफंस कॉलेज में शिक्षक सी. एफ. एन्ड्रयूज ने "यंग इंडिया" के अपने संपादकीय में उल्लेख किया है, दिल्ली में रिज के नीचे, शहर से काफी दूर दिलखुश भवन में गांधी अपना उपवास रख रहे थे। वही, दोनों समुदायों के बीच सदभाव लाने के लिए गांधी की अध्यक्षता में अखिल भारतीय पंचायत की स्थापना की गई।
वर्ष 1930 में गांधी के नेतृत्व में देश में असहयोग आंदोलन आरंभ हुआ। इस आंदोलन की शुरूआत औपचारिक रूप से गांधी ने 12 मार्च 1930 को डांडी की ओर कूच करके नमक का कानून तोड़ने की दृष्टि से की। 5 मई 1930 को गांधी के बंदी बनाए जाने की खबर के बाद दिल्ली में हड़ताल होने के साथ सभी दुकानें बंद हो गईं। कश्मीरी गेट स्थित जिला मजिस्ट्रेट के दफ्तर तक एक जुलूस निकाला गया जहां लाल रंग के कपड़े पहने हुए महिला स्वयंसेविकाओं ने दीवानी और फौजदारी अदालत, खजाने तथा पुलिस कार्यालयों का घेराव किया। देवदास गांधी, लाला शंकर लाल, देशबंधु गुप्त तथा चमन लाल सहित बहुत से लोगों ने गिरफ्तारियां दी। वर्ष 1931 में सविनय अवज्ञा आंदोलन पूरे जोरों पर था।
यह निर्णायक समय था जब इस आंदोलन को राष्ट्रवादी बढ़ावा मिल रहा था। उसी समय अचानक दिल्ली शांतिवार्ता का केन्द्र बन गई थी। अंग्रेज वाइसराय लार्ड इर्विन तथा गांधी के बीच लंबी बातचीत चली तथा सरकार व कांग्रेस के बीच 5 मार्च 1931 को 15 दिन की लगातार बातचीत के बाद "गांधी-इर्विन पैक्ट" नामक एक समझौता हुआ। इसके कुछ दिनों बाद जब 23 मार्च को लाहौर में भगत सिंह सहित उनके दो साथियों को फांसी लगाई गई तो न केवल दिल्ली, बल्कि सारा देश शोक में डूब गया। दिल्ली में पूर्ण रूप से हड़ताल रही। 18 अप्रैल को लार्ड इर्विन के दिल्ली से रवाना होते ही गांधी-इर्विन पैक्ट का उल्लंघन होना शुरू हो गया। लार्ड इर्विन ने जिन बातों से सहमति प्रकट की थी उनको उसके बाद आने वाले नए वाइसराय लार्ड विलिंगडन ने अस्वीकार कर दिया। इतना ही नहीं, गांधी और सरदार पटेल को 4 जनवरी 1932 को गिरफ्तार कर लिया गया।
दूसरे महायुद्ध के शुरू होने पर 15 सितंबर, 1939 को दिल्ली में कांग्रेस की कार्यकारिणी समिति की बैठक हुई। गांधी की सलाह पर कार्यकारिणी समिति ने अंग्रेजी सरकार से भारत को स्वतंत्र घोषित करने की प्रार्थना की। यूरोप में फ्रांस के पतन बाद जब 3 जुलाई 1940 को दिल्ली में दोबारा कार्यकारिणी समिति की बैठक हुई तब भी यह मांग रखी गई। भारत में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध गांधी के नेतृत्व में सांकेतिक विरोध के रूप में वैयक्तिक सत्याग्रह आरंभ किया गया।
आंदोलन में एक स्थिति ऐसी भी आई थी जब गांधी ने अपेक्षा की, कि जो सत्याग्रही गिरफ्तार नहीं किए गए थे उन्हें युद्ध विरोधी प्रचार करते हुए दिल्ली की ओर पैदल प्रस्थान करना चाहिए। भारत में स्थिति खराब होते देख ब्रिटिश कैबिनेट के प्रस्तावों के साथ 23 मार्च 1942 को स्टेफोर्ड क्रिप्स दिल्ली आए। 27 मार्च को गांधी की उनसे बातचीत हुई और समझौते की उम्मीद के साथ वे 4 अप्रैल को दिल्ली से वापिस लौट गए। मौलाना आजाद की अध्यक्षता में दिल्ली में कार्यकारिणी समिति की एक बैठक हुई, जिसमें अंग्रेजों के प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया गया।
भारत का वाइसराय बनने के बाद लार्ड माउन्टबेटन (24 मार्च 1947) ने गांधी सहित सभी प्रमुख राजनीतिक नेताओं, जिसमें मुहम्मद अली जिन्ना भी शामिल थे, की कठिन भारतीय समस्या का हल खोजने के लिए दिल्ली बुलाया। 3 जून की योजना अनिच्छा से स्वीकार कर ली गई। माउन्टबेटन ने एक प्रसारण में कहा कि जोर जबरदस्ती का विकल्प केवल बंटवारा है। स्वतंत्रता और विभाजन दोनों की घोषणा 15 अगस्त 1947 को एक साथ हुई।
भारत-विभाजन के कारण हुए विस्थापन और दंगों की भीषणता से दिल्ली भी अछूती नहीं रही। ऐसे में गांधी 9 सितंबर 1947 को दिल्ली आए। गांधी ने कश्मीर में पाकिस्तान के हमले के बावजूद भारत सरकार को पाकिस्तान की बकाया राशि का भुगतान करने के लिए कहा। अन्ततः उन्होंने आमरण अनशन तब तक जारी रखने का निर्णय लिया जब तक दिल्ली में सांप्रदायिक तनाव समाप्त नहीं हो जाता। 13 जनवरी, 1948 को उन्होंने सामुदायिक सौहार्द की पुनः स्थापना के लिए अनशन, उनका 15 वां, प्रारम्भ किया। 18 जनवरी को डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद के नेतृत्व में सौ नेता बिरला भवन गए, जहां गांधी ठहरे हुए थे तथा उन्हें राजधानी में सांप्रदायिक शांति स्थापित करने का वचन दिया। दो सप्ताह से भी कम समय में राजधानी में सामान्य अवस्था की दोबारा स्थापना हो गई। अतः अनशन समाप्त हो गया। परंतु केवल 12 दिन के पश्चात् ही गांधी की हत्या हो गई।
लेखक प्यारेलाल ने अपनी पुस्तक "महात्मा गांधी-अंतिम चरण" में गांधी की शव यात्रा के बारे में लिखते हैं कि राजा जार्ज पंचम की प्रतिमा के आधार तक जनता आस पड़ोस के तालाबों को बड़ी मेहनत से पार करके पहुंची थी। जैसे ही जुलूस गुजरने लगा वे जुलूस का दृश्य भली प्रकार से देखने के लिए, पत्थर की छतरी को सहारा देने वाले खम्भों पर लटक गए, 150 फुट ऊंचे युद्व स्मारक की चोटी पर बैठे हुए दिखाई दिए, बत्ती के अथवा टेलीफोन के खम्भों पर तथा रास्ते के दोनों ओर लगे हुए वृक्षों की शाखाओं पर बैठ गए। दूर से समस्त केंद्रीय मार्ग (सेंट्रल विस्टा) मानवता का लगभग निश्चल सा विशाल जनसमुद्र दिखाई पड़ता था।
गांधी के पीछे थे, राजधानी के नागरिक
दिल्ली में स्वतंत्रता संग्राम के चरित्र की विशेषता यह रही कि राजधानी की शहरी और ग्रामीण आबादी दोनों ने कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई में भाग लिया। महरौली और नरेला में स्थित खादी आश्रमों, बवाना की चौपाल और बदरपुर में गांधी खैराती अस्पताल कुछ ऐसे केंद्र थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के संदेश को फैलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दिल्ली में आजादी की लड़ाई में हिंदू-मुस्लिम एकजुटता एक और खास बात थी। भारतीय मुसलमानों के खिलाफत आंदोलन को गांधी के आह्वान कारण हिंदुओं का पूरा समर्थन मिला।
यह गांधी के नेतृत्व का ही करिश्मा था कि अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में दिल्ली की महिलाओं की हिस्सेदारी उल्लेखनीय थी। सत्यवती, पार्वती देवी डिडवानिया, अरुणा आसफ अली, वेद कुमारी, बृज रानी, मेमो बाई दिल्ली की कुछ ऐसी प्रमुख महिलाएं थीं, जिन्होंने आगे बढ़कर आंदोलन में भाग लिया। इन महिलाओं ने व्यापक रूप से विदेशी वस्तुओं की बिक्री के खिलाफ आंदोलन में दुकानों की पिकेटिंग में भाग लिया।
इस दौरान शिक्षक और छात्रों भी स्वतंत्रता संघर्ष में गांधी के प्रभाव से अछूते नहीं थे। सेंट स्टीफन कॉलेज के प्रिंसिपल सुशील रुद्र सहित हिंदू कॉलेज के शिक्षक आजादी की लड़ाई में हरावल दस्ता थे। सेंट स्टीफन, रामजस, हिंदू, इंद्रप्रस्थ गर्ल्स कॉलेज के छात्र-छात्राओं ने आंदोलन में पूरी सक्रियता से भाग लिया।
गांधी ने दिल्ली में स्वतंत्रता आंदोलन को बहुत महत्व दिया और वास्तव में वे व्यक्तिगत रूप से यहां उपस्थित होकर उसे गति देने के इच्छुक थे। यही कारण है कि उन्होंने स्थानीय नेताओं जैसे हकीम अजमल खान, बहिन सत्यवती, देश बंधु गुप्ता, आसफ अली और डॉ मुख्तार अहमद अंसारी को काफी प्रोत्साहित किया। इस अवधि में वे अधिकतर रूद्र (सेंट स्टीफन कॉलेज), मोहम्मद अली, डॉ अंसारी के निवास और बिरला हाउस में रहे और लगातार वायसराय हाउस आते-जाते रहें।
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तिथि एवं वर्ष |
दिल्ली में गांधी के कार्यक्रम का विवरण
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13-04-1915
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गांधी दिल्ली में पहली बार वर्ष 1915 में आए। इस प्रवास के दौरान गांधी ने 13 अप्रैल को कश्मीरी गेट स्थित सेंट स्टीफंस कॉलेज में छात्रों को संबोधित किया था।
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01-11-1918
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पटौदी हाउस में दिल्ली के नागरिकों की सार्वजनिक बैठक में भाग लिया।
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23-11-1919
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गांधी ने पहले अखिल भारतीय खिलाफत सम्मेलन में भाग लिया और खिलाफत सहित दूसरी शिकायतों के निवारण के लिए एक संयुक्त हिंदू-मुस्लिम आंदोलन की वकालत की।
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30-11-1919
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गांधी ने प्रिंसेस पार्क में रोलेट एक्ट के खिलाफ आयोजित बैठक को संबोधित किया।
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15-9-1924
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गांधी ने हिंदुस्तान टाइम्स समाचार पत्र का उद्घाटन किया।
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17-9-1924 से
8-10-1924 |
गांधी ने मौलाना मोहम्मद अली के निवास पर दिल्ली में आत्म शुद्धि के उपाय के रूप में 21 दिन का उपवास रखा।
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1-3-1925
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गांधी ने रायसीना हॉस्टल में हिंदू-मुस्लिम एकता पर सर्वदलीय सम्मेलन समिति की उप-समिति की बैठक की अध्यक्षता की।
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19-2-1929
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गांधी ने विठ्ठलभाई पटेल की पार्टी में वायसराय सहित भाग लिया।
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1-11-1929
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गांधी ने दिल्ली पहुंचकर संयुक्त वक्तव्य के मसौदे तैयार करने के लिए विट्ठलभाई पटेल के घर पर नेताओं की बैठक में शामिल हुए। गांधी ने इस बात को रेखांकित किया कि शर्तों को पूरा किए बिना अंग्रेज वायसराय का प्रस्ताव अस्वीकार्य है।
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2-11-1929
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गांधी ने टाउन हॉल में भाषण दिया। कांग्रेस समिति, मजदूर सभा ने उन्हें अपने विचारों से अवगत करवाया और नागरिकों ने उन्हें धनराशि भेंट की।
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17-2-1931
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गांधी रेल से गाजियाबाद पहुंचे। वे शाहदरा में सुबह की सैर के बाद डॉ अंसारी के घर पहुंचे। वहां पार्क में एकत्र लोगों से बातचीत की। अंग्रेज वायसराय से मिलने से पहले वी. एस शास्त्री, तेजबहादुर सप्रू और एम. आर. जयकर से भेंट की।
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25-2-1931
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गांधी ने हिंदू कालेज में छात्रों और शिक्षकों को संबोधित किया।
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26-2-1931
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गांधी ने शीशगंज गुरुद्वारा में संगत को भाषण दिया।
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5-3-1931
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वायसराय हाउस में लॉर्ड इरविन और गांधी ने अस्थायी समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसकी आधिकारिक घोषणा शाम 5 बजे की गई।
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10-12-1933
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गांधी ने हरिजन क्वार्टरों, खादी भंडार और जामिया मिलिया इस्लामिया का दौरा किया।
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13-12-1933
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गांधी सुबह अलीपुर गए और जनसभा को संबोधित किया।
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2-1-1935
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गांधी ने हरिजन सेवक संघ के नए संविधान के बारे में चर्चा की। दिल्ली में हरिजन कॉलोनी का शिलान्यास किया। नरेला में हरिजन सम्मेलन का उद्घाटन किया।
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12-1-1935
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दिल्ली में मवेशी प्रजनन फार्म का दौरा किया।
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15-1-1935
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दिल्ली में माॅडर्न हाई स्कूल का दौरा किया।
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19-1-1935
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जामिया मिल्लिया में एक भाषण कार्यक्रम की अध्यक्षता की और सांसियों की बस्ती में सांसी समाज के लोगों से बातचीत की।
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23-1-1935
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गांधी ने अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी, डॉ जाकिर हुसैन, कृष्णन नायर के साथ दिल्ली के गांवों का तीन दिवसीय दौरा शुरू किया। इस दौरे में नरेला और बाकनेर भी गए।
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24-1-1935
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गाँधी ने थुड, सुलतानपुर और बवाना नामक गांवों का दौरा किया।
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25-1-1935
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गाँधी ने हुमांयूपुर, मुनिरका और रामताल का दौरा किया।
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27-1-1935
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गाँधी ने दिल्ली में विधायकों को संबोधित किया।
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15-03-1939
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गाँधी ने दिल्ली जेल में कैदियों को भूख हड़ताल समाप्त करने का अनुरोध किया।
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18-03-1939
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गाँधी ने लक्ष्मी नारायण मंदिर के शुभारंभ के अवसर पर भाषण दिया।
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27-07-1939
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गाँधी ने हरिजन काॅलोनी में हरिजन औद्योगिक गृह के पहले दीक्षांत समारोह के कार्यक्रम की अध्यक्षता की और छात्रों को प्रमाणपत्र वितरित किए।
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01-11-1939
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गाँधी ने जिन्ना के आवास में उनसे बातचीत की।
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02-11-1939
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गाँधी ने हरिजन निवास में प्रार्थना कक्ष के उद्घाटन समारोह में भाषण दिया।
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सितंबर, 1947
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गाँधी ने सांप्रदायिक दंगों को रोकने के लिए दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों का दौरा किया। पाकिस्तान से आए हिंदू और सिख विस्थापितों के शरणार्थी शिविरों का भी प्रवास।
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13-1-1948
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गाँधी ने दिल्ली में सांप्रदायिक एकता के लिए बिरला हाउस, तीस जनवरी मार्ग पर पांच दिन का उपवास रखा।
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27-01-1948
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गांधी ने महरौली स्थित ख्वाजा कुतुबउद्दीन बख्तियार की दरगाह का प्रवास किया और उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित किया।
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30-01-1948
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नाथूराम गोड़से ने 78 वर्षीय गांधी की बिरला हाउस में हत्या कर दी।
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