Sapta Sindhu_seven rivers of saraswati valley_सप्तसिन्धु_सप्तसिंधव_सरस्वती घाटी
सरस्वती घाटी की सात नदियाँ मूल रूप से सप्तसिन्धु का निर्माण करती हैं। जिन सात नदियों के कारण सप्तसिंधव प्रदेश का नाम सप्तसिंधव पड़ा था वे थीं-सिन्धु, विपाशा (व्यास), शुतुद्रि या शतद्रु (सतलज/सतलुज), वितस्ता (झेलम), असिकी (चनाब/चिनाब), परुष्णी (रावी) और सरस्वती। यह सप्तसिंधव प्रायः वही प्रदेश है जिसका नाम आजकल पंजाब-कश्मीर है।
उन दिनों सिन्धु और सरस्वती का ही यशोगान होता था। वेद-मंत्रों में सिन्धु को सीधे बहनेवाली, श्वेत वर्ण, दीप्यमाना, वेगवती, अहिंसिता और नदियों में श्रेष्ठ नदी कहा गया है। उल्लेखनीय है कि ऋगवेद के दशम मंडल के पचहतरवें सूक्त में सिन्धु की महिमा गान की गई है। वैसे सिंधु और ब्रह्मपुत्र का उनके वेग और प्रवाह क्षेत्र के कारण नद माना जाता है।
सरस्वती उन दिनों महा नदी थी। ऋगवेद में उसके संबंध में कहा गया है-"नदी के रूप में प्रकट होकर सरस्वती ने ऊंचे पहाड़ों को अपनी वेगवान विशाल लहरों से इस प्रकार तोड़फोड़ डाला है जैसे जड़ों को खोदने वाले मिट्टी के ढेरों या टीलों को तोड़ डालते हैं।''
(सप्तसिन्धु का मानचित्र-के.एस. वल्दिया रिपोर्ट के सौजन्य से)
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