History of Ambala Air Base_Rafele_अम्बाला एयर बेस का इतिहास_रफेल
अम्बाला एयरफील्ड में 'फ्रोजन टियर' युद्ध स्मारक
भारत में रफेल लड़ाकू विमानों के भारतीय वायुसेना के अम्बाला सैन्य हवाई अड्डे पर उतरने के कारण चर्चा में है। अगर इस सैन्य हवाई अड्डे के इतिहास में झांके तो पता चलता है कि जिस अम्बाला सैनिक हवाई अड्डे पर रफेल विमान उतरे, यहाँ सबसे पहली हवाई पट्टी अंग्रेजों के जमाने में वर्ष 1919 में बनी थी। उल्लेखनीय है कि भारतीय वायुसेना के गठन के पहले से ही अविभाजित हिन्दुस्तान में पंजाब सूबे का हिस्सा अंबाला, राॅयल एयर फोर्स के आरंभिक दिनों से ही वायुसेना के प्रशिक्षण का केन्द्र रहा। आज हरियाणा में आने वाला यह क्षेत्र, देश से सबसे बड़ी छावनी क्षेत्रों में से एक है।
वर्ष 1919 में अम्बाला में कैंप अम्बाला की योजना के साथ सैनिक विमानों का आवागमन शुरू हुआ था। जब रॉयल एयर फोर्स की 99 स्क्वाड्रन ने ब्रिस्टल युद्वक विमानों के साथ यहां डेरा डाला था। यहां एयर फोर्स स्टेशन पर लगी एक पट्टिका के अनुसार, वर्ष 1922 में अंबाला को रॉयल एयर फोर्स की इंडिया कमान का मुख्यालय बनाया गया।
"काॅम्बेक्ट लोरः इंडियन एयर फोर्स 1930-1945" शीर्षक वाली पुस्तक में अंग्रेजी के वरिष्ठ पत्रकार और लेखक सोमनाथ सप्रू लिखते हैं कि अंबाला मुख्य रूप से भारतीय वायु सेना की नंबर वन स्क्वाड्रन के प्रशिक्षण और तैयारी के लिए नंबर 28 आरक्षित का बेस था। जबकि इसके साथ, रॉयल एयर फोर्स की दूसरी स्क्वाड्रन के विमान भी मध्य पूर्व से लेकर बर्मा और सिंगापुर तक यही से अंतर महाद्वीपीय हवाई उड़ाने भरते थे।
अम्बाला में आरंभिक दिनों में, डी हैविलैंड 9 ए और ब्रिस्टल एफ2बी जैसे विमानों ने उड़ान भरी। अंग्रेज भारत में हवाई परिचालन के बढ़ने के कारण अम्बाला में अधिक वायु सैनिक अधिकारियों को तैनात किया जाने लगा। 18 जून, 1938 को अम्बाला को वायुसेना का एक स्थायी हवाई अड्डा बना दिया गया। यहां तक कि उस समय यहां पर एक एडवांस्ड फ्लाइंग ट्रेनिंग स्कूल भी बनाया गया। यह बात कम जानी है कि इसी एयरबेस से 1947-48 के कश्मीर ऑपरेशन में, श्रीनगर घाटी के संघर्ष के लिए हवाई प्रशिक्षकों ने स्पिटफायर और हार्वर्ड्स की उड़ानें भरी थी।
देश की आजादी से पहले अंबाला नंबर 1 स्क्वाड्रन का भी ठिकाना रहा है। नंबर 1 स्क्वाड्रन, भारतीय वायु सेना की पहली यूनिट थी जिसकी शुरूआत कराची में हुई थी। 1930 के दशक के मध्य में, उत्तर पश्चिमी सीमांत सूबे में कबीलों के विरुद्व अभियान के बाद, इस स्क्वाड्रन को अंबाला स्थानांतरित कर दिया गया। मार्च 1939 में, यहां भारतीय वायुसेना के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक घटी। जब तत्कालीन फ्लाइट लेफ्टिनेंट (बाद में एयर मार्शल) सुब्रतो मुखर्जी ने अम्बाला में स्क्वाड्रन लीडर सी एच स्मिथ से स्क्वाड्रन के नेतृत्व का दायित्व ग्रहण किया। इस तरह, वे अंग्रेज भारत में हवाई स्क्वाड्रन की कमान संभालने वाले पहले भारतीय अधिकारी बन गए। अगस्त 1939 में, सुब्रतो को स्क्वाड्रन लीडर के रूप में पदोन्नत किया गया। इससे पहले, वे फ्लाइट कमांडर बनने वाले पहले भारतीय अधिकारी भी बने थे। तब तक स्क्वाड्रन में तीनों फ्लाइट कमांडर भारतीय बन चुके थे।
वर्ष 1947 के अंक 21 वाले "इंडियन इनफरमेशन" नामक सरकारी पत्र के अनुसार, तब रक्षा सदस्य सरदार बलदेव सिंह के अंबाला हवाई अड्डे पर पहुंचने पर एयर कमोडोर आर. बी. जॉर्डन, कमांडिंग नंबर 1 इंडियन ग्रुप के ग्रुप कैप्टन आर. इ. बैन ने उनकी अगवानी की थी। उल्लेखनीय है कि सरदार बलदेव सिंह पंथिक पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में शामिल किए गए थे।
देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अम्बाला एयरबेस की कमान ग्रुप कैप्टन अर्जन सिंह, जो कि बाद में भारतीय वायु सेना के मार्शल बने, ने संभाली। तब दिल्ली के लालकिले पर हुए स्वतंत्रता दिवस समारोह में हुए सबसे पहले फ्लाईपास्ट का नेतृत्व अर्जन सिंह ने ही किया।
आजादी के बाद के शुरुआती वर्षों में, भारत सरकार देश की पूर्वी सीमा तक पहुंचने के लिए हवाई साधन पर ही निर्भर थी। तब के दौर में, अंबाला एयरबेस ने उत्तर पूर्व में हुई देश विरोधी गतिविधियों की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसके बाद, इसे एक नयी विधा एरियल फोटोग्राफिक सर्वे का केंद्र बनाया गया जो कि बाद के दिनों में बहुत महत्वपूर्ण साबित हुई।
1 अप्रैल 1948 को यहां 'टाइगर्मोथ' एयरक्राफ्ट के साथ अम्बाला में फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर्स स्कूल का गठन किया गया।जिसे छह साल बाद, अक्तूबर 1954 में चेन्नई के पास तांबरम में स्थानांतरित कर दिया गया। उसके बाद के दौर में, अंबाला में वैम्पायर्स, टोफानिस, मिस्ट्रेस और हंटर्स जैसे विमानों के साथ एक लड़ाकू भूमिका निभाई। 1 अगस्त, 1954 को नंबर 7 विंग के अपने वर्तमान पदनाम तक पहुंचने वाले अम्बाला एयर फोर्स स्टेशन अपनी भूमिका में अनेक परिवर्तन का साक्षी बना। वर्ष 1965 में पाकिस्तान ने भारत हमला किया। इस लड़ाई में पाकिस्तान ने अपने बी-57 बमवर्षकों से अम्बाला के एयरबेस पर बमबारी की। वह बात अलग है कि इस पाकिस्तानी हवाई हमले में अम्बाला हवाई क्षेत्र की एक तरफ बने गिरजाघर का ही नुकसान हुआ। जबकि बाकी रक्षा प्रतिष्ठान सुरक्षित रहें।
देश का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परम वीर चक्र प्राप्त करने वाली भारतीय वायुसेना की एकमात्र स्क्वाड्रन, नंबर 18 स्क्वाड्रन, भी अम्बाला में ही स्थित थी। यहां तैनात जीनेट युद्धक विमानों के एक दल को वर्ष 1965 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान श्रीनगर स्थानांतरित किया गया। फलाइंग लेफिटनेंट निर्मलजीत सिंह सेखों, जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया गया, इसी युद्धक विमान चालकों में शामिल थे। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के साथ वर्ष 1948 में हुए युद्धविराम समझौते की शर्तों के तहत, भारत को शांतिकाल में श्रीनगर में लड़ाकू विमान तैनात करने की अनुमति नहीं थी। इस कारण युद्व की घोषणा होने की स्थिति में युद्धक विमानों के बेड़े को अम्बाला से श्रीनगर उड़ान भरनी पड़ती थी।
अम्बाला एयरफील्ड में 'फ्रोजन टियर' नामक एक युद्ध स्मारक बना हुआ है। यह इस हवाई पट्टी से उड़ान भरने वाले उन विमान चालकों समर्पित है। इस युद्ध स्मारक का उद्घाटन वर्ष 1982 में किया गया था। इस स्मारक की पृष्ठभूमि में हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स एचएएल जीनैट ई-1051 बना हुआ है। जिसमें प्रतीक स्वरूप एक आंसू को एक प्रस्तर के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। यह स्मारक अम्बाला एटीसी की इमारत के ठीक पीछे बना हुआ है।
अंबाला हवाई अड्डे के बारे मे दुर्लभ जानकारी। मुझे यह पहली बार पता चला है कि सरदार बलदेव सिंह को नेहरू जी के पहले मंत्री मंडल मे पंथिक पार्टी के प्रतिनिधि के रूप मे शामिल किया गया था।
3 comments:
अंबाला हवाई अड्डे के बारे मे दुर्लभ जानकारी। मुझे यह पहली बार पता चला है कि सरदार बलदेव सिंह को नेहरू जी के पहले मंत्री मंडल मे पंथिक पार्टी के प्रतिनिधि के रूप मे शामिल किया गया था।
शानदार
बहुत सुंदर और रोचक जानकारी। आभार।
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