केवल एक मत से हुए विजयी
5 जनवरी 1917 को सरदार पटेल पहली बार गुजरात की राजधानी अहमदाबाद की नगरपालिका के पार्षद चुने गए थे। तब उन्होंने दरियापुर सीट से चुनाव लड़ा था और केवल एक वोट से जीत प्राप्त की थी। वर्ष 1924 में, वे अहमदाबाद नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गए।
स्वास्थ्य जांच की सार्वजनिक प्रयोगशाला की स्थापना
देश के स्वतंत्र होने से पूर्व वर्ष 1921 तक केवल पुणे और कराची में दो स्वास्थ्य की जांच की सार्वजनिक प्रयोगशालाएँ थीं। सरदार पटेल ने रोगों की रोकथाम के लिए ऐसी प्रयोगशालाओं की आवश्यकता का अनुभव किया, जिससे पानी और खाने-पीने की वस्तुओं की गुणवत्ता सुनिश्चित हो। सरदार पटेल की इसी दूरदृष्टि का का परिणाम थी, अहमदाबाद के शाहीबाग में दुधेश्वर वाटरवक्र्स परिसर में एक तीसरी प्रयोगशाला की स्थापना।
पटेल के सफलतापूर्वक लड़ा था, भ्रष्टाचार का मुकदमा
अहमदाबाद नगरपालिका में सरदार पटेल और 18 दूसरे पार्षदों के विरुद्व भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। 28 अप्रैल, 1922 को अहमदाबाद जिला अदालत में 1.68 लाख रुपए की राशि के धन के गलत ढंग से खर्च का मामला दर्ज किया गया था। सरदार ने इस कदाचार के मामले में अपना सफलतापूर्वक बचाव किया। उसके बाद, वर्ष 1923 में उन्हें बम्बई उच्च न्यायालय में इस मामले का सामना करना पड़ा। वहां भी सरदार ने इस मामले का सामना किया और सफलता प्राप्त की।
पहला गुजराती टाइपराइटर
वर्ष 1924 में सरदार पटेल ने सबसे पहले गुजराती भाषा में टाइपराइटर के निर्माण की दिशा में पहल की थी। उनकी दूरदर्शिता का ही परिणाम था कि अहमदाबाद नगरपालिका ने इस कार्य के लिए रेमिंगटन कंपनी का चयन किया था। इस कंपनी ने गुजराती भाषा में पहला टाइपराइटर बनाया, जिसके लिए कंपनी को 4,000 रुपए की राशि का भुगतान किया गया था।
पटेल ने स्थानीय चुनावों में स्त्रियों की समान भागीदारी को सुनिश्चित करने में निभाई प्रभावी भूमिका
सरदार पटेल जिला नगरपालिका अधिनियम में लिंग के आधार पर अयोग्य घोषित करने वाले भेदभावकारी प्रावधान के विरुद्व आवाज उठाने वाले पहले व्यक्ति थे। इस अधिनियम की धारा 15 (1) (सी) के अनुसार स्त्रियों के चुनाव लड़ने से रोक थी। इस विषय पर 13 फरवरी, 1913 को अहमदाबाद नगरपालिका की आम सभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया। सरदार पटेल का कहना था कि स्त्रियों को निर्वाचित स्थानीय निकाय में सम्मिलित न करने का अर्थ शहरी जनसंख्या के आधे हिस्से को उसके अधिकारों से वंचित रखना था। उनके प्रभावी विरोध और सकारात्मक हस्तक्षेप का ही परिणाम था कि वर्ष 1926 में धारा 15 (1) (सी) को समाप्त कर दिया गया।
स्त्रोत : https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/10-things-to-know-about-sardar-vallabhbhai-patel/against-building-statues-and-memorials/slideshow/62084266.cms
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