अक्षर ज्ञान जो हमारा हुआ उसके बाद घर में जो भी पढ़ने-लिखने को मिला उसको पढ़ने का चस्का लग गया। पढ़ने के चस्के ने ही अंततोगत्वा मुझे लेखक बनने की प्रेरणा दी।
-अमृतलाल नागर, अपने पढ़ने-लिखने की बात पर, अज्ञेय को वर्ष 1981 में एक पत्रिका 'अभिरुचि' को दिए एक साक्षात्कार में
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