एक हिंदी के समाचार चैनल पर खबर चल रही थी, धमाके के पीड़ित ! और टीवी देखते-देखते सोने की बजाए जाग गया ।
अब तक 'दंगो के पीड़ित' तो सुना था पर अब धमाके के पीड़ित । धमाके में घायल तो समझ आता है पर लगता है कि हिंदी के समाचार चैनल मीडिया की मंडी में अपना एक नया 'शब्दकोश' ही गढ़ने में लगे है ।
यह प्रवृति अंग्रेजी चैनलों के बरगद के नीचे उगने वाले हिंदी के बोन्साई समाचार चैनलों में ज्यादा नज़र आती है जहाँ हिंदी समाचार पत्रिकाओं और चैनलों के नाम भी अंग्रेजी में होते है तो फिर उनसे 'भाखा' कि उम्मीद रखना मृगतृष्णा से ज्यादा कुछ नहीं ।
आखिर 'स्वर्ण मृग' नहीं होता इसका ज्ञान सीता को भी था और राम को भी पर फिर भी सीता ने 'स्वर्ण मृग' माँगा और राम उसके पीछे गए । अंग्रेजी चैनलों के बरगद के नीचे उगने वाले हिंदी के बोन्साई चैनलों से खांटी दर्शकों का नाता कुछ ऐसा ही है, जहां दर्शक सीता की तरह भाषा रूपी 'स्वर्ण मृग' की तृष्णा का मूल्य चुकाता है ।
अंग्रेजी चैनल के रिपोर्टर की खबर को ही अंग्रेजी-हिंदी की खिचड़ी में बोले वॉइस ओवर, टीवी के समाचार रिपोर्ट के अंत में टीवी रिपोर्टर का भाषण, के साथ चलने के कारण हिंदी चैनल में खांटी पत्रकारों की जगह तो सिकुड़ती ही है और साथ में खांटी दर्शक भी हिंदी कि पिच पर अंग्रेजी का लप्पा मारते पत्रकार को सामने पाकर खुद को ठगा हुआ-सा महसूस करता है । और फिर वही बौद्धिक विधवा विलाप कि विज्ञानं-प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष विज्ञान जान ने वाले हिंदी पत्रकार है ही नहीं तो फिर अंग्रेजी ही सुनिए और समझ न आए डिक्शनरी, नहीं शब्दकोश को लादे रखिए ।
अब इसमें 'विक्रम' कौन और 'बेताल' कौन आप भी बूझिए ।
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