कुमार गन्धर्व का अमर निर्गुण गायन
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सखिया, वा घर सबसे न्यारा,
जहां पूरन पुरुष हमारा |
जहां नहीं सुख दुख, साच झूट नहीं,
पाप न पुन्य पसारा |
नहीं दिन रैन, चांद नहीं सूरज,
बिन ज्योति उजियारा....सखिया |
नहीं तह ज्ञान ध्यान, नहीं जप तप,
वेद कित्तेब न बानी |
करनी धरनी रहनी गहनी,
ये सब जहां हिरानी....सखिया |
धर नहीं अधर, न बाहर भीतर,
पिंड ब्रम्हंड कछु नाही |
पांच तत्व गुन तीन नहीं तह,
साखी शब्द न ताहीं....सखिया |
मूल न फूल, बेली नहीं बीजा,
बिना ब्रच्छ फल सोहे |
ओहम् सोहम् अर्ध उर्ध नहीं,
स्वास लेख न कौ है....सखिया |
जहां पुरुष तहवा कछु नाहीं,
कहे कबीर हम जाना |
हमरे संग लाखे जो कोई,
पावे पाद निर्वाना...सखिया |
स्त्रोत: https://www.youtube.com/watch?v=vyMnUiC8cq8
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