क्या पत्रकारिता में बिना औपचारिक ज्ञान, जिसे आज की भाषा में डिग्री कहा जाता है, के आने वाले पत्रकार कमतर मानना उपयुक्त है ?
आखिर राजनीति और पत्रकारिता का साथ तो चोली-दामन का माना जाता है तो फिर एक के लिए नैतिकता और लक्ष्मण रेखा और दूसरे के लिए ग्रीन चैनल!
बड़ी नाइंसाफी है, नेता का बेटा होटल खोल ले तो भारी गड़बड़ और संपादक का हॉस्पिटल खोल ले तो आगे गली तंग है.
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