हिंदी हैं हम, वतन हैं....
आज 'हिंदी दिवस' पर अनेक फेसबुक मित्रों की वाल पर यह पढ़ने को मिला.
पहली बात वतन तो हिंदी से पहले भी था !
दूसरी, यहाँ हिंदी का मतलब भाषा के लिए न होकर नागरिकता के लिए है. यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि बाद में इन्हीं पंक्तियों के रचियता इकबाल ने चीन-ओ-अरब हमारा, हिंदूस्तान हमारा मुस्लिम हैं हमवतन है सारा जहां हमारा का राग भी अलापा.
आज के उत्तर प्रदेश और तब के संयुक्त प्रान्त में मुसलमानों ने उर्दू और देश से अलग होने की आवाज़ बुलंद की थी.
राही मासूम रज़ा के क्लासिक उपन्यास 'आधा गाँव' में इस खंडित मुस्लिम मानसिकता और देश-महजब के विरोधाभास को बखूबी उकेरा गया है.
इस तरह समझने वाली बात यह है कि अच्छे उदेश्य से बात का मूल सन्दर्भ नहीं बदल जाता. इसलिए हमेशा सन्दर्भ सहित की बात को ध्यान में रखकर बात कहना बेहतर होता है. ऐसे में किसी भी तरह के उदाहरण की बैसाखियों की कोई जरुरत नहीं रह जाती. सो बात को गुनकर, अपने अनुभव के आधार पर लिखना ज्यादा सही और प्रभावी है.
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