हिंदी में लिखने की कसौटी मेरे संपादक और अग्रज ने बताई थी जो दिमाग में सदा के लिए दर्ज हो गयी, अगर तुम हिंदी लिखते हो तो तुम्हारी माँ को लिखा समझ में आना चाहिए, उस समय मेरी शादी नहीं हुई थी. सो दुनिया माँ से शुरू होती थी और माँ पर खत्म.
आज माँ तो रही नहीं, हां पर मेरा लिखा मेरी पत्नी समझ आता है, बेटी को पता है.
सो, लगता है सफल है लिखना बाकि मैं तो अभी सीखने के कोशिश में अपना अभ्यास जारी रखे, खुद को मांझने की कोशिश कर रहा हूँ , कितना सफल रहा अभी तक यह तो पढ़ने वाले ही बता पाएगे.....
रोजी-रोटी, मान-सम्मान और अपने पर अभिमान हिंदी का ही दिया है, बाकि मेरी हस्ती ही क्या है ?
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