Bird Watching in Delhi_दिल्ली में पक्षियों को निहारने (बर्डवाचिंग) की परंपरा
वर्तमान समय में साक्षर भारतीय वन्य जीवन के पेड़ पौधों से लेकर पक्षियों के नाम अंग्रेजी नामों से ही परिचित है जबकि देश में पुराने समय से ही समाज व्यवस्था में वन का कितना महत्व रहा है यह मनुष्य जीवन के अंत में वानप्रस्थ में जाने की बात से सिद्ध होता है। अगर हम अपनी प्राचीन पंरपरा को देखें तो प्राचीन काल से ही भारतीय जन जीवन में पक्षी प्रेम और पंक्षी निहारन की बात दिखती है। वह अलग बात है कि आज न केवल व्यक्ति के रूप में बल्कि समाज के स्तर पर भी यह विरासत मुख्यधारा से छिटक सी गई है।
भारतीय संस्कृति में पक्षियों का अत्याधिक महत्व रहा है। अगर ध्यान करें तो हिंदू देवी-देवताओं के वाहन के रूप में पक्षियों को हमेशा से आदर मिला है। जैसे ब्रह्मा और सरस्वती का हंस, विष्णु का गरुड, कार्तिकेय का मंयूर, कामदेव के तोता, इंद्र और अग्निदेव का अरुण क्रुंच (फलैमिंगो), वरुणदेव का चक्रवाक (शैलडक)। संसार की सबसे पुरानी पुस्तक माने जाने वाले ऋग्वेद में जहां 20 पक्षियों का वर्णन है तो वहीं यजुर्वेद में 60 पक्षियों का उल्लेख है। इतना ही नहीं, मनुस्मृति और पराशरस्मृति में तो पक्षियों के संरक्षण के हिसाब से कुछ विशेष पक्षियों को मारने पर रोक तक लगाने की बात कही गई है। इसी तरह, चाणक्य रचित अर्थशास्त्र में भी राजा को अपने राज्य में पक्षी-संरक्षण करने के स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं।
जहां तक आधुनिक दिल्ली के इतिहास की बात है राजधानी में समृद्ध पक्षी जगत के बारे में जानकारी पहले पक्षी निहारने वाले अंग्रेजों की लिखित टिप्पणियों, बनाए गए नोट और सूचियों से मिलती है। सर बाॅसिल एड्वर्ड ने 1920 के दशक में केवल पांच महीनों के भीतर ही लगकर दिल्ली के पक्षियों की 230 प्रजातियों के नमूनों के बारे में जानकारी जुटाई थी। उसके बाद, सर एन.एफ. फ्रोम ने 1931-1945 की अवधि में अपने और दूसरों की टिप्पणियों के आधार पर जानकारी एकत्र करके सन् 1947 में करीब तीन सौ प्रजातियों की सूची बनाई। हटसन ने 1943-1945 की अवधि में राजधानी में पक्षी विज्ञान से संबंधित किए अपने सर्वेक्षण में ओखला के पक्षियों को दर्ज किया।
वर्ष 1950 में बनी दिल्ली बर्ड वाॅचिंग सोसाइटी, जिसकी स्थापना होरेस अलेक्जेंडर ने की थी, ने मेजर जनरल एच.पी.डब्ल्यू हस्टन की टिप्पणियों को "बर्ड्स अबाउट दिल्ली" के शीर्षक से एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया। इसी तरह, मैलकम मैकडोनाल्ड ने भी बगीचे वाले पक्षियों पर दो किताबें छापी। 1970 के दशक तक इसके साथ पीटर जैक्सन, विक्टर सी. मार्टिन, कैप्टन आई. न्यूहैम और उषा गांगुली जैसे उत्साही व्यक्ति जुड़ चुके थेे। वर्ष 1970 में सोसाइटी की दिल्ली के पक्षियों की प्रजातियों की सूची 403 की हो गई थी।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने वर्ष 1975 में उषा गांगुली की दिल्ली के पक्षी जगत पर किए एक महत्वपूर्ण कार्य को "ए गाइड टू द बर्डस आॅफ द दिल्ली एरिया" नामक शीर्षक से पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया। इस पुस्तक में गांगुली ने ओखला के जल पक्षियों के बारे में लिखते हुए 403 प्रजातियों को सूचीबद्ध किया। उन्होंने अपने वर्गीकरण में 150 प्रजातियों को प्रवासी, 200 को स्थानीय और 50 की स्थिति अज्ञात के रूप में दर्ज की। अगर गौर करें तो पता चलेगा कि दिल्ली में पाए जाने वाले पक्षियों की यह संख्या देश में पाई जाने वाली पक्षियों की प्रजातियों की कुल संख्या की लगभग एक तिहाई हैं।
इसके बाद, वर्ष 1991 में दिल्ली के पर्यावरण पर काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन "कल्पवृक्ष" ने राजधानी में पक्षियों की सूची को बढ़ाते हुए 444 का दिया। कल्पवृक्ष ने इस पूरी जानकारी को "द दिल्ली रिज फाॅरेस्ट, डिकलाइन एंड कन्जरवेशन" के नाम से प्रकाशित किया। खास बात यह थी कि इन सूचीबद्ध पक्षियों में लगभग 200 प्रजातियां दिल्ली रिज से थी। उल्लेखनीय है कि हजारों की संख्या में प्रवासी और स्थानीय प्रजातियों के पक्षी दिल्ली रिज की ओर आकर्षित होकर आते हैं।
ऐतिहासिक रूप से ओखला के आसपास के इलाके, यमुना नदी और इससे सटे दलदली क्षेत्र पक्षी प्रेमियों के लिए एक पसंदीदा स्थान रहे हैं। मेजर जनरल एच.पी.डब्ल्यू हटसन और श्रीमती उषा गांगुली दोनों ने ही अपनी पुस्तकों में ओखला के पक्षियों की उपस्थिति को प्रमुखता से दर्ज किया है। "दिल्ली गजेटियर (1883-84)" में यमुना नदी के पूर्वी किनारे में भरपूर संख्या में जंगली पशु-पक्षियों के होने का वर्णन है जबकि "दिल्ली गजेटियर (1912)" में यह बात दर्ज है कि सर्दियों में कलहंस और बत्तख को जहां कहीं भी रहगुजर के लिए पर्याप्त पानी मिलता था, वे वहीं डेरा जमा लेते थे।
राजधानी में पक्षियों को देखने के हिसाब से ओखला बैराज एक आदर्श स्थान है। यह बैराज पक्षी अभयारण्य जलचरों जल पक्षियों के लिए स्वर्ग है। इस अभयारण्य की सबसे बड़ी खासियत नदी, जो कि पश्चिम में ओखला गांव और पूर्व की ओर गौतमबुद्ध नगर के बीच में फंसी सी दिखती है, के ठहराव से बनी एक विशाल झील है। यहां एक बांध के निर्माण और उसके परिणामस्वरूप वर्ष 1986 में एक झील के बनने से बाद इस स्थान पर पक्षियों को निहारने (बर्डवाचिंग) की गतिविधि बढ़ी है। यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों में कलहंस, पनकुकरी, कूट पक्षी, नुकीले पूंछ वाली बत्तख, हवासील, जंगली बत्तखों की बहुतायत संख्या है।
सैकड़ों स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की रक्षा और उनके प्रजनन के लिए एक सुरक्षित अभयारण्य प्रदान के एक उद्देश्य से इस झील के आसपास के क्षेत्र का चयन करते हुए उसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया।वर्ष 1990 में यह क्षेत्र ओखला पक्षी अभ्यारण्य के नाम की घोषणा के साथ अस्तित्व में आया। ओखला पक्षी अभयारण्य के दक्षिण में कालिंदी कुंज अपने शांत वातावरण और प्राकृतिक हरीतिमा के कारण एक अत्यंत आनंदित और सुखद स्थान है। इस क्षेत्र में देखे गए पक्षियों की करीब 250 प्रजातियों में से 160 प्रजातियां प्रवासी पक्षियों की हैं जो सर्दियों में तिब्बत, यूरोप और साइबेरिया से अपना लंबा सफर तय करके यहां अपना डेरा डालने के लिए आते हैं।
सर्दियों की शुरुआत के साथ ही ये प्रवासी पक्षी नवंबर के महीने से आना शुरू हो जाते हैं। इस तरह ये प्रवासी पक्षी नवंबर से मार्च तक लगभग चार महीने के लिए यहां अपना बसेरा करते हैं। सो, पक्षी प्रेमियों के लिए इन प्रवासी पक्षियों को निहारने का यह सबसे उपयुक्त समय होता है। ओखला पक्षी अभ्यारण्य में पक्षियों के साथ जलीय जानवरों को भी देखा जा सकता है। जबकि गर्मी के मौसम की आहट के साथ ही ये पक्षी अपने घरों की ओर वापसी की उड़ान भरना शुरू कर देते हैं।
यमुना, नजफगढ़, रामघाट और ओखला जैसे दिल्ली के जलक्षेत्र बड़ी संख्या में पानी के पक्षियों जैसे चैती, जंगली बत्तख, पिनटेल, चौड़ी चोंच वाली बत्तख को आकर्षित करते हैं। सर्दियों के दौरान कलहंस, सारस और क्रौंच की अनेक प्रजातियां दिल्ली के दलदलों और झीलों में उतरते हैं। दिल्ली में पक्षियों को देखने के हिसाब से प्रमुख स्थानों में ओखला में यमुना और आसपास के खादर का ग्रामीण अंचल, उत्तरी रिज, विश्वविद्यालय गार्डन, और कुदसिया बाग, बुद्ध जयंती पार्क, लोधी गार्डन और हुमायूं का मकबरा और पुराना किला के पास राष्ट्रीय प्राणी उद्यान (दिल्ली का जू) है।
इस विषय में अंग्रेजी में उल्लेखनीय पुस्तकों में खुशवंत सिंह की ‘दिल्ली थ्रू द सीजन्स’, रणजीत लाल की ‘बर्डस आॅफ दिल्ली’, समर सिंह की ‘गार्डन बर्डस आॅफ दिल्ली, आगरा एंड जयपुर’, मेहरान जैदी की ‘बर्डस एंड बटरफ्लाइज आॅफ दिल्ली’ तो हिंदी में सालिम अली की ‘भारत के पक्षी’ (हिंदी अनुवाद), ‘पक्षी निरीक्षण’ (पर्यावरण शिक्षक केंद्र), विश्वमोहन तिवारी की ‘आनंद पंछी निहारन’ हैं।
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