भारत के इतिहास में दिल्ली की एक अद्वितीय भू-राजनीतिक स्थिति है। प्राचीन काल से ही दिल्ली भारतीय उप-महाद्वीप की राजधानी के साथ ‘‘उद्यान-नगर” दोनों ही रही है। दिल्ली राज्य का कुल क्षेत्रफल 1,48,639 हेक्टेअर है, जिसमें 4,777 हेक्टेअर शहरी क्षेत्र है। राजधानी का हरित क्षेत्रफल कुल क्षेत्रफल का 19 प्रतिशत है, जो कि देश के दूसरे शहरों की तुलना में अधिक है। यह दिल्ली को भारत के सर्वाधिक हरियाली वाले शहरों में से एक बनाता है। जहां एक ओर करीब तीन करोड़ मनुष्यों की आबादी है तो दूसरी ओर यमुना नदी और रिज का वन एक भरे-पूरे पशु-पक्षियों के संसार को जिलाए हुए हैं। पर इस बात से कोई इंकार नहीं है कि महानगर के शहरीकरण का मूल्य तेजी से घटी जैव विविधता को चुकाना पड़ा है, जिसमें खासी कमी आई है।
इतिहास इस बात का गवाह है कि कुछ दशक पहले तक यमुना नदी में घड़ियालों, मगरमच्छों और कछुओं की खासी संख्या होती थी। वहीं सर्दियों के हजारों की संख्या में प्रवासी पक्षियों के अलावा कई अन्य जीव-जंतुओं भी पाए जाते थे। ऐतिहासिक काल से रिज को असाधारण पौधों और भयानक पशुओं के निवास के रूप में अभेद्य क्षेत्र माना गया। इस तरह से, भाग्य के धनी दिल्ली के नागरिकों के दोनों हाथों में लड्डू थे यानी एक नदी और दूसरा भरपूर हरा भरा जंगल। जंगल भी ऐसा, जिसमें तेंदुओं से लेकर भेड़ियों और सूक्ष्म कीटों की खासी संख्या थी और सब एक सामंजस्य पूर्ण ढंग से एकसाथ गुजर करते थे।
पुराने समय से ही दिल्ली के शासकों में पर्यावरण के संरक्षण और सुरक्षा की जागरूकता का भाव रहा है। 14 वीं सदी में जब रिज के वन बेहद कम पेड़ थे, तब तुगलक वंश के बादशाह फिरोजशाह तुगलक ने यहां पौधे लगवाए थे। वर्ष 1803 में दिल्ली पर कब्जा करने के बाद अंग्रेज कंपनी सरकार ने भी दिल्ली में बड़े पैमाने पर पौधारोपण का कार्यक्रम शुरू कर दिया और लिखित दस्तावेज बताते हैं कि यहां 1878-79 की अवधि में 3000 नीम और बबूल के पेड़ लगाए गए थे। सन् 1911 में अंग्रेज राजा के कलकत्ता से राजधानी को दिल्ली लाने की घोषणा के बाद ब्रितानिया सरकार ने वर्ष 1913 में उत्तर और मध्य रिज को भारतीय वन अधिनियम, 1878 के तहत संरक्षित वन घोषित कर दिया गया। वर्ष 1942 में रिज के उत्तरी भाग के अतिरिक्त 150.46 हेक्टेयर भूमि को भी संरक्षित वन बनाने की घोषणा कर दी गई। उसके बाद, वर्ष 1948 में रिज के दक्षिणी और मध्य भाग को भी संरक्षित वन घोषित कर दिया गया।
अंग्रेजों के समय का दिल्ली का गजेटियर (1883-84), दिल्ली के वन्य जीवन का वर्णन करते हुए बताता है कि यमुना नदी के पूर्वी किनारे में भरपूर संख्या में सूअर, लोमड़ी, खरगोश थे। लगभग हर जगह काले हिरन पाए जाते थे जबकि चिंकारा पहाड़ियों, विशेष रूप से भूंसी और सिनाली, और रिज के हिस्से में मिलते थे। भेड़ियों की संख्या अधिक नहीं थी लेकिन वे आम तौर पर पुरानी छावनी के पास दिखते थे। बुराड़ी और खादीपुर के गांवों के पास नीलगायें दिखती थीं। तुगलकाबाद और बाहरी गांवों में तेंदुआ देखा जाता था जबकि बुराड़ी और यमुना के पास अच्छी संख्या में पैरा (हॉग हिरण) होते थे। साथ ही यमुना नदी में मुख्य रूप से मगर और घड़ियाल की उपस्थिति की बात रिकॉर्ड की गई है। यहां चपटी नाक वाले आदमखोर मगरमच्छ काफी थे और इनमें से काफी यमुना नदी के तट पर आज की राइफल रेंज के पास धूप सेकते देखे जा सकते थे। यह दस्तावेज दिल्ली के जीवों के बारे में रोचक तथ्यों का उल्लेख करते हुए बताता है कि है कि पिछले पांच साल में दस तेंदुए, 367 भेड़िए और 1127 सांपों को मारने के लिए 8900 रुपये की राशि पुरस्कार के रूप में दी गई।
1912 के गजेटियर के अनुसार, एक तेंदुए को मारने पर पांच रुपये के हिसाब से 143 रुपये दिए गए। जबकि एक नर भेड़िया के शिकार पर पांच रुपये और मादा भेड़िया के शिकार पर तीन रुपये के हिसाब से ईनाम दिया जाता था। इस दस्तावेज में स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की व्यापक सूची भी है, जिसमें विशेष रूप से नजफगढ़, भलस्वा के आसपास चैती और बत्तखों के होने का उल्लेख है।
देश की आजादी के बाद वर्ष 1980 में, रिज के उत्तरी, मध्य और दक्षिणी रिज में बीस स्थानों को चिन्हित करते हुए भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत संरक्षित वन बना दिया गया। 9 अक्तूबर, 1986 को दिल्ली के उपराज्यपाल ने रिज के दक्षिणी भाग के 1880 हेक्टेयर क्षेत्र को असोला-भाटी वन्य जीव अभयारण्य होने और फिर वर्ष 1989 में महरौली परिसर को संरक्षित विरासत क्षेत्र होने की घोषणा की। अप्रैल 1991 में भाटी माइंस का 840 हेक्टेयर का और अधिक क्षेत्र असोला अभयारण्य में शामिल किया गया।
अप्रैल 1993 में रिज प्रबंधन समिति (जिसे लवराज कुमार समिति के रूप में भी जाना जाता है) को नियुक्त किया गया। इस समिति ने अक्तूबर 1993 में दिल्ली रिज के प्रबंधन के लिए अपनी रिपोर्ट सौंपी। नवंबर, 1993 में केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने दिल्ली प्रशासन को रिपोर्ट को पूरी तरह से लागू करने के निर्देश दिए। मई 1994 में, दिल्ली के उपराज्यपाल ने वर्तमान समय की सीमाओं के आधार पर भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 4 के तहत पूरे रिज को संरक्षित वन घोषित कर दिया। यह निर्णय रिज पर लवराज कुमार समिति की रिपोर्ट के अनुरूप लिया गया था। दिल्ली में हरित क्षेत्र के प्रबंधन का काम विभिन्न सरकारी एजेंसियों में बंटा हुआ है, जिसमें 5,050 हेक्टेअर क्षेत्र के लिए जिम्मेदार दिल्ली विकास प्राधिकरण रिज और यमुना नदी मुहाने पर प्राकृतिक पर्यावरण संरक्षण का कार्य किया है।
असोला-भाटी वन्य जीव अभयारण्य
दिल्ली दुनिया की अकेली महानगरीय राजधानी है जो अपनी नगरीय सीमा में एक वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र-छतरपुर के पास असोला भाटी वन्य जीव अभयारण्य-का दावा कर सकती है। असोला भाटी वन्य जीव अभयारण्य, पहला मानव निर्मित अभयारण्य होने के साथ एक समृद्व वन्य जीवन का भी पोशण करता है। इतना ही नहीं यह अरावली पहाड़ियों में एकमात्र संरक्षित क्षेत्र होने के साथ दिल्ली और उससे सटे उपनगरों के पर्यावसरण को साफ रखने वाले फेफड़ों का कार्य करता है। वर्ष 1986 में असोला भाटी वन्य जीव अभयारण्य को राजधानी के तीन गांवों और दक्षिणी रिज के एक हिस्से को मिलाकर बनाया गया। वर्ष 1991 में एक सरकारी अधिसूचना के भाटी क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने का परिणाम राजधानी में 4845.58 एकड़ क्षेत्र वाले असोला भाटी वन्य जीव अभयारण्य के रूप में सामने आया। इस अभयारण्य के बनने से यहां और सुरक्षित वातावरण से यहां वऩ-वन्य जीवन में विविधता बढ़ी है।
1 comment:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (09-12-2016) को नहीं ठोक पाया कभी, वह तो अपनी पीठ; चर्चामंच 2551 पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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