Monday, December 19, 2016

Sangeet Natak Academy_Seminar on Cinema_संगीत नाटक अकादेमी और सिनेमा पर सेमीनार

दैनिक जागरण, १७ दिसंबर २०१६ 




आज यह बात जानकर किसी को भी अचरज होगा कि संगीत नाटक अकादेमी ने सन् 1955 में दिल्ली में पहली बार फिल्म पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया था। यह एक कम-जाना तथ्य है कि अकादेमी की स्थापना के समय यह कल्पना की गई थी कि वह सिनेमा की विधा को भी आगे बढ़ाने का काम करेगी। फिल्म के भी नाटक का ही एक विस्तार होने की लोकप्रिय अवधारणा और परम्परागत भारतीय रंगमंच तथा लोकप्रिय सिनेमा का विश्लेषण भी इसी बात की पुष्टि करता है।

इस तरह, अकादेमी ने वर्ष 1955 में इसी विचार को लेकर सिनेमा-संगोष्ठी आयोजित की। यही नहीं वर्ष 1961 तक अकादेमी ने फिल्मों में निर्देशन, अभिनय, पटकथा, संगीत और गीत के लिए पुरस्कार भी दिए।

जब इस फिल्म संगोष्ठी का आयोजन किया तो अकादेमी के पहले अध्यक्ष पी. वी. राजामन्नार ने फिल्म को एक भिन्न रूप और स्वतंत्र कला व्यक्तित्व वाली विधा बताया। इस संगोष्ठी की योजना और संचालन पूरी तरह फिल्म जगत के प्रसिद्ध कलाकारों और दूसरे पेशेवरों के हाथ में था। भारतीय सिनेमा की पहली अभिनेत्री देविका रानी रोरिक इस संगोष्ठी की संयुक्त-कार्यकारी निदेशक थी तो वरिष्ठ रंगमंचीय कलाकार-फिल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर उनके सह-संयुक्त निदेशक, संगोष्ठी के निदेशक बी.एन. सरकार और प्रवर समिति के अध्यक्ष नित्यानंद कानूनगो थे।

इस मौके पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हिंदी में दिए अपने भाषण में कहा कि "कुछ दिनों से मैं देख रहा हूँ कि दिल्ली में चारों तरफ इस बात की चर्चा है कि यहां एक फिल्म सेमिनार होने वाला है। उसके इन्तजाम करने वालों की अपनी शख्सियत से और इसके मजमून से इसकी दिल्ली में काफी चर्चा होती रही है। हर एक आदमी जानता है कि सिनेमा आजकल की दुनिया में एक खास चीज है जिसका असर उसपर काफी है। इसलिए हमें इसमें दिलचस्पी लेनी है और इस सेमीनार का यहां होना एक माकूल बात है। अच्छी बात है कि लोग इस काम से खास तौर से ताल्लुक रखत हैं वे आपस में मिलें, सलाह और मशवरा करें। क्योंकि इसी तरह पेचीदा सवालों पर रोशनी पड़ती है। जाहिर है कि जैसे फिल्म इन्डस्ट्री को इसमें दिलचस्पी है उसी तरह यहां की हुकूमत को भी काफी दिलचस्पी है और जिस चीज में करोड़ों आदमियों को दिलचस्पी हो उसमें यकीनन गवर्मेन्ट को दिलचस्पी होनी चाहिए।"

इस जमावड़े में अनेक साहित्यकारों, फिल्म संगीतकारों और सिनेमा के फोटोग्राफरों ने भी हिस्सा लिया। इस संगोष्ठी की शुरुआत पंकज मल्लिक ने अपनी सुरमई आवाज में वेदों के एक गीत से की। नेहरू ने इस संगोष्ठी में शामिल कलाकारों के सम्मान में अपने सरकारी निवास पर एक रात्रि भोज दिया। इस संगोष्ठी के आयोजन से पूर्व भारत सरकार ने सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए राष्ट्रीय सम्मान की स्थापना कर दी थी। इस अखिल भारतीय सांस्कृतिक प्रतियोगिता में सभी भारतीय भाषाओं की फिल्मों ने हिस्सा लिया।

देश के प्रधानमंत्री ने 27 फरवरी 1955 को दिल्ली में नेशनल फिजिकल लेबोट्ररी के सभागार में इस संगोष्ठी का उद्घाटन किया था। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति सर्वापल्ली राधाकृष्णन, उनकी बेटी इंदिरा गांधी, कमलादेवी चट्टोपाध्याय भी उपस्थित थे।

इसमें संगोष्ठी में बंबई, कलकत्ता और मद्रास की फिल्मी दुनिया की तत्कालीन सभी नामचीन हस्तियां शामिल हुई। जिसमें अनिंद्रा चौधरी, बी. सान्याल, पंकज मल्लिक, वी. शांताराम, नरगिस, दुर्गा खोटे, राज कपूर, किशोर साहू, विमल राय, अनिल बिस्बास, ख्वाजा अहमद अब्बास, दिलीप कुमार, वासन जैमिनी प्रमुख थे। दिल्ली के प्रतिनिधिमंडल में उदयशंकर, आर रंजन, कवि नरेंद्र शर्मा, जगत नारायण, एम भवनानी और जगत प्रसाद झालानी थे।

पहला पुरस्कार, विमल राॅय को उनकी फिल्म "दो बीघा जमीन" के लिए प्राप्त हुआ। संगीत नाटक अकादेमी ने इस फिल्म संगोष्ठी की रपट को फिल्म सेमीनार रिपोर्ट, 1955 के नाम से प्रकाशित किया था।



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