90 के दशक के आरंभिक वर्षों में दक्षिणी दिल्ली के मेरे कॉलेज में दूसरी मंजिल पर बने पुस्तकालय में दो ही प्रेमी होते थे, एक पुस्तक के और दूसरे...
मजाल है कि इन दोनों के अलावा कोई और आ भी जाएँ।
पुस्तकों से प्यार के अलावा प्यार का भी ठिकाना था...
कोई किताब में खोने आता था तो कोई प्यार में!
आखिर। वे भी क्या दिन थे।
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