Saturday, December 3, 2016

History of Bird Watching in Delhi_दिल्ली में पंक्षी निहारन का इतिहास




आज के समय में पढ़े-लिखे भारतीय भी पक्षियों के नाम अंग्रेजी में ही जानते हैं जबकि भारत में प्राचीन काल से पक्षी प्रेम और पंक्षी निहारन (बर्डवाचिंग) की एक सशक्त परंपरा रही है। दुख की बात यह है कि हम आज न केवल व्यक्ति के रूप में बल्कि समाज के स्तर पर भी इस विरासत को बिसरा रहे हैं। हिंदू संस्कृति में पक्षियों का बहुत महत्व है। विभिन्न देवताओं के वाहन के रूप में उन्हें सम्मान मिलता रहा है यथा विष्णु का गरुड, ब्रह्मा और सरस्वती का हंस, कामदेव के तोता, कार्तिकेय का मंयूर, इंद्र तथा अग्निदेव का अरुण क्रुंच (फलैमिंगो), वरुणदेव का चक्रवाक (शैलडक)। ऋग्वेद में 20 पक्षियों तो यजुर्वेद में 60 पक्षियों का उल्लेख है।


आधुनिक समय में दिल्ली के समृद्ध पक्षी जीवन के विषय में सबसे पहले जानकारी पक्षी निहारने वाले आरंभिक समूहों, जिसमें स्वाभाविक रूप से अंग्रेज अधिक थे, की टिप्पणियों, नोट और सूचियों से मिलती है। वैसे अंग्रेजों के जमाने के सरकारी दिल्ली गजेटियर (वर्ष 1912) में यह बात दर्ज है कि सर्दियों में कलहंसों और बत्तखों को जहां कहीं भी रहगुजर के लिए पर्याप्त पानी मिलता था, वे वहीं डेरा जमा लेते थे।


वर्ष 1920 के दशक में सर बाॅसिल एड्वर्ड ने पांच महीने में ही 230 प्रजातियों के पक्षियों के नमूने जुटाए। तो सर एन.एफ. फ्रोम ने 1931-1945 की अवधि में कार्य करते हुए राजधानी की करीब तीन सौ प्रजातियों को सूचीबद्ध किया।


वर्ष 1950 में होरेस अलेक्जेंडर की पहल पर स्थापित दिल्ली बर्ड वाॅचिंग सोसाइटी ने मेजर जनरल एच.पी.डब्ल्यू. हस्टन की टिप्पणियों को ‘बड्र्स अबाउट दिल्ली’ के नाम से छापा। हटसन ने (1943-1945) के दौरान दिल्ली में पक्षी विज्ञान से संबंधित अपने सर्वेक्षण-अध्ययन में ओखला के पक्षियों को भी दर्ज किया।जबकि अंग्रेज़ राजदूत मैलकम मैकडोनाल्ड ने भी बगीचे वाले पक्षियों पर दो किताबें लिखी।


वर्ष 1975 में उषा गांगुली ने ‘ए गाइड टू द बर्डस आॅफ द दिल्ली एरिया’ पुस्तक में ओखला के जल पक्षियों के बारे में लिखते हुए 403 प्रजातियों को सूचीबद्ध किया। गांगुली ने अपने वर्गीकरण में 150 प्रजातियों को प्रवासी, 200 को स्थानीय और 50 की स्थिति अज्ञात के रूप में दर्ज की।



यह संख्या भारत में पाई जाने वाली पक्षियों की प्रजातियों की कुल संख्या का लगभग एक तिहाई हैं। फिर गैर सरकारी संगठन कल्पवृक्ष ने वर्ष 1991 में ‘द दिल्ली रिज फाॅरेस्ट, डिकलाइन एंड कन्जरवेशन ’ प्रकाशन में इस सूची को अद्यतन करते हुए पक्षियों की संख्या को बढ़ाकर 444 कर दिया। विशेष बात यह थी इन सूचीबद्ध पक्षियों में लगभग 200 प्रजातियां अकेले दिल्ली की रिज से थी, जो कि प्रवासी और स्थानीय प्रजातियों को आकर्षित करती है।


इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए हिंदी में राजेश्वर प्रसाद नारायण सिंह की ‘भारत के पक्षी’, सालिम अली की ‘भारत के पक्षी’ (हिंदी अनुवाद), ‘पक्षी निरीक्षण’ (पर्यावरण शिक्षक केंद्र), विश्वमोहन तिवारी की ‘आनंद पंछी निहारन’ तो अंग्रेजी में खुशवंत सिंह की ‘दिल्ली थ्रू द सीजन्स’, रणजीत लाल की ‘बर्डस आॅफ दिल्ली’, समर सिंह की ‘गार्डन बर्डस आॅफ दिल्ली, आगरा एंड जयपुर’, मेहरान जैदी की ‘बर्डस एंड बटरफ्लाइज आॅफ दिल्ली’ को पढ़ा जा सकता है।


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