Delhi Villages and Independence Movement_अंग्रेजी राज के खिलाफ लड़ा था दिल्ली देहात
दिल्ली देहात ने अंग्रेजी राज के खिलाफ अपना बिगुल तो आजादी की पहली लड़ाई (1857) में ही फूंक दिया था पर राजधानी पर अंग्रेजों के दोबारा कब्जे के कारण वह प्रयास आधा अधूरा दब गया तिस पर भी भीतर आजादी की चिंगारी सुलगती रही। पहले विश्व युद्व के बाद देश में आई राजनीतिक जागरूकता से दिल्ली भी अछूती नहीं रही। दिसम्बर 1918 में राजधानी में पंडित मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस अधिवेशन में देहात से 800 व्यक्तियों ने हिस्सा लिया और दिल्ली के प्रत्येक गांव में कांग्रेस की एक समिति बनाने की बात तय हुई।
दिल्ली देहात ने केवल कांग्रेस ही नहीं बल्कि क्रांतिकारियों का भी पूरा साथ दिया। तब यह ग्रामीण इलाका हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (सेना) के क्रांतिकारियों के छिपने की एक प्रमुख आश्रय स्थली था और कुछ क्रांतिकारियों के गुप्त अड्डे हिंडन नदी तक थे। अंग्रेज सरकार से यह बात छिपी नहीं थी और इसी कारण 1915 में दिल्ली के यमुना पार के शाहदरा परगना और गाजियाबाद तहसील के कुछ गांव दिल्ली में मिला दिए।
1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में असहयोग आंदोलन पर एक प्रस्ताव पारित होने के बाद दिल्ली देहात में "कर नहीं देने" (नो टैक्स) के अभियान ने जोर पकड़ा । दिल्ली देहात में कांग्रेस ने निवासियों को "कर नहीं देने" और अंग्रेजों से असहयोग करने के लिए प्रेरित किया। इसके लिए 20 स्वयंसेवकों के समूह ने महरौली से अपना अभियान शुरू करते हुए सुल्तानपुर, छतरपुर, नायडू, गढ़ी, देवली, खानपुर, मदनगीर और सैदुल अजाब गांवों का दौरा किया। इस समूह ने लाडो सराय गांव सहित हौजखास, अधचीनी और बेगमपुर गांवों में सफल सभाएं की, जिसमें बड़े स्तर पर ग्रामीण जनभागीदारी थी। 1930 में कांग्रेसी गतिविधियों के केंद्र बने पश्चिमी दिल्ली के कराला गांव में शीशराम राम के घर दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति की शाखा खोली गई।
16 जुलाई 1930 को नायर सहित छह कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करके ग्यारह महीने की कैद की सजा सुनाई गई। जब देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन छिड़ा तो दिल्ली देहात में उसकी कमान कृष्णा नायर के हाथ में थी। वे नरेला सहित करीबी गांवों में कर नहीं देने का सफल अभियान चला चुके थे। अंग्रेज सरकार ने दिल्ली देहात में कर नहीं देने के अभियान पर रोक लगाने के लिए एक विशेष अध्यादेश पारित किया तो पुलिस ने इन सभाओं में भाग लेने वालोें को गिरफ्तार करने लगी।
जून 1931 में नरेला में हुई बैठक में 750 ग्रामीण शामिल हुए जिसमें सरकारी लगान के अधिक होने और उसमें छूट देने की मांग रखी गई। इसी का नतीजा था कि 1931 में केवल 20 प्रतिशत राजस्व ही जुटा। दिल्ली में महात्मा गांधी की अनुमति लेने के बाद 1931 में नरेला श्री गांधी सेवा आश्रम बना, जिसके लिए गांव वालों ने 17 बीघा जमीन दान दी। इसके प्रभारी कृष्णा नायर थे जबकि बृजकृष्ण चांदीवाला ने भी आश्रम के लिए मदद की । 1931 में महरौली में रामतल में एक और आश्रम बना। इस तरह आजादी की लड़ाई में दिल्ली के गांवों का योगदान अतुलनीय रहा ।
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