Delhi_a british cantonment_1857_जब अंग्रेज सेना छावनी बनी दिल्ली
1857 की देश की पहली आजादी की लड़ाई में भारतीयों को हराने के बाद अंग्रेजों ने दिल्ली पर दोबारा कब्जा कर लिया।
अंग्रेजों ने उसके तीन साल बाद तक राजधानी की ईंट से ईंट बजा दी और समूची दिल्ली ही मानो एक छावनी में बदल गई। तब दिल्ली पर अपने कब्जे को बनाए रखने के हिसाब से अंग्रेज सेना ने दिल्ली में नई सैनिक छावनियां बनाने के लिए पांच गांवों तिमारपुर (वजीराबाद), राजपुर, धुक्का, मुलकपुर और चंद्रावल की जमीनों को अपने दखल में ले लिया।
नए छावनी क्षेत्र में 2571 बीघा और 10 बिस्वा जमीन का अधिग्रहण किया गया। इन दखल की जमीनों का गांववालों को कोई मुआवजा नहीं दिया गया और भूमि से उनका स्वामित्व समाप्त हो गया। जबकि पुरानी छावनी को राइफल रेंज और सैनिकों के लिए डेरा डालने के हिसाब से मैदान के लिए चिन्हित करके छोड़ दी गई।
अंग्रेज सेना के लिए नया छावनी क्षेत्र अधिक उपयुक्त था क्योंकि यह पानी के स्त्रोत यानी नजफगढ़ से आने वाले एक गहरे नाले से कुछ मील की दूरी पर ही था। इस नाले से छावनी को एक ओट मिली हुई थी जबकि इस छावनी की भौगोलिक और सामरिक स्थिति ऐसी थी कि यहां से शहर पर आसानी से नियंत्रण रखा जा सकता था।
इस छावनी की बाईं तरफ खैबर पास के पास अंग्रेज सेना और उसके सैनिकों की रोजमर्रा की जरूरत के सामान की खरीद फरोख्त के हिसाब से सदर बाजार स्थापित किया गया। अब तक अंग्रेज भारत की एक प्रमुख शक्ति बन चुके थे और समूचे उत्तरी भारत कोई भी भारतीय ताकत उन्हें में चुनौती देने की स्थिति में नहीं रह गई थी।
दिल्ली के पुराने शहर शाहजहांनाबाद में भारतीय ही रहते थे जबकि शुरू में भी अंग्रेजों की काॅलोनी भारतीय बसावट से बिलकुल अलग थी। वैसे बाद में कुछ भारतीय भी, जो कि ब्रिटिश राज के वफादार थे, सिविल लाइन के पास रहने लगे। अंग्रेजों को इससे कोई शिकायत नहीं थी क्योंकि पुराने बाजार और महत्वपूर्ण व्यापार केंद्र शाहजहांनाबाद में ही स्थित थे।
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