वल्लभाचार्य ने यमुना की स्तुति में "यमुनाष्टक" लिखा। इस प्रसिद्ध स्तुति में एक स्थान पर कहा गया है कि "न जातु यमयातना भवति ते पयः पानतः" यानी यमुना के जल को पीने से किसी भी समय यम की यातना नहीं होती। लेकिन आज दिल्ली में इस सूर्यपुत्री की क्या स्थिति है?
एक जमाना था कि यमुना के सभी घाट कच्चे थे। रेती को ही काट-संवार कर सीढ़ियां बना दी जाती थीं और जल को स्पर्श करता हुआ एक चिकना लंबा पटरा सबसे नीचे की सीढ़ी पर बिछा होता था। साफ-स्वच्छ जल में नहाने में भी आनंद आता था। पर आज यह सब कुछ नहीं है। जमाना बदल गया है। उस दौर में दिल्ली के पहले रईस, जो धार्मिक विचार रखते थे, अपने घोड़ों-तांगों या बग्घियों में बैठकर सवेरे नियम से यमुना नहाने आते थे। उन्हीं के प्रोत्साहन और प्रेरणा से घाट धीरे-धीरे पक्के होते गए। नीली छतरी घाट, जो हिंदुओं के लिए पवित्र शमशान घाट है और अभी भी प्रयोग में है। ऐसी मान्यता है कि यमुना तट पर नीली छतरी मंदिर का निर्माण युधिष्ठिर ने कराया था।
तैराकों का स्वर्ग काशीराम का घाट, जो निगम बोध श्मशान के निकट है, काफी मशहूर था। शादीराम का घाट, पंडित तोताराम का घाट, चांदमल का घाट और ऐसे
कितने ही मशहूर घाट थे, जिनके घटवाले स्वयं भी धर्म-परायण माने जाते थे। जैसे पंडित तोताराम ही बारह महीनों सवेरे चार बजे उठते ही शंख बजाते थे। वह कटरा मशरू, दरीबा में रहते थे।
पर आज ये सब घाट वाले नहीं है-इनकी चौथी-पांचवीं पीढ़ी आज घाटों पर है और कई लोगों ने तो अपनी एवज में दूसरे पंडित बैठा दिए हैं, जिनकी स्थिति लगभग गुमाश्तों जैसी है। आधुनिक दौर में जो हाल घाटों का हुआ है कुछ वही हालत नदी की भी है। पुराणों में वर्णित नरक में बहने वाली मल-मूत्र की नदियों से यमराज की बहन यमुना की तुलना नहीं की जा सकती, पर आज यमुना में दिल्ली के नागरिक जो कुछ बहा रहे हैं, उसमें कौन स्नान करेगा?
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