भारत में आस्था के तीन केन्द्र–बिंदु रहे- एक थी सनातन हिन्दू धर्म की बहुदैवीय आस्तिकता, दूसरी थी शाक्यमुनि गौतम बुद्ध द्वारा प्रचारित आत्मबोध–परक बोधि–दृष्टि और तीसरी थी जिन तीर्थंकरों द्वारा पोषित–प्रसारित प्रज्ञा–दृष्टि।
इन तीनों के समुच्चय से ही बनी प्राचीन भारत की समन्वयवादी सांस्कृतिक चेतना।
http://www.abhivyakti-hindi.org/paryatan/2011/ajanta_alora/ajanta_alora.htm
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