Tuesday, May 13, 2014

Indian Films-Soft power (भारतीय फिल्म उद्योग-सॉफ्ट पावर)



भारतीय फिल्म उद्योग एक वर्ष में एक दर्जन से ज्यादा भाषाओं में 1000 से अधिक फिल्में बनाता है। भारतीय सिनेमा न केवल देश की बहु-सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करता है बल्कि देश की भाषायी समृद्धि का भी प्रतीक है। यह एक राष्ट्रीय निधि है तथा सच्चे अर्थों में देश की सॉफ्ट पावर है जो अंतरराष्ट्रीय सम्बंध स्थापित करता है और सहजता के साथ विश्व को जोड़ता है।
भारतीय सिनेमा थियेटरों, लगभग दो हजार मल्टीप्लेक्सों से सीधे तथा टीवी और इंटरनेट के जरिए देश और विदेश के करोड़ों लोगों से जुड़ा हुआ है। वर्ष 2013 में भारतीय मीडिया और मनोरंजन उद्योग ने वर्ष 2012 के मुकाबले 11.8 प्रतिशत की अधिक विकास दर हासिल की तथा लगभग 92000 करोड़ रुपए का कुल कारोबार किया। इस उद्योग के वर्ष 2018 तक 14.2 प्रतिशत की मिश्रित वार्षिक विकास दर दर्ज करके 1.8 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है।
हमें कहानी कहने वाले कहानीकारों, इन कहानियों को पर्दे पर उतारने वाले कलाकारों, हमारी कथाओं को आकर्षक बनाने वाले विषय सामग्री के रचनाकारों और विषय सामग्री के संपादकों तथा चित्रों के जरिए हमारे अंतरतम् से बात करने वाले चलचित्रकारों की आवश्यकता है। भविष्य की ओर अग्रसर होते हुए, हमें भारतीय सिनेमा की महान विभूतियों—दादा साहेब फाल्के, सत्यजीत राय, ऋत्विक घटक, विमल रॉय, मृणाल सेन, अदूर गोपालकृष्णनन, एम.एस. सथ्यू, गिरीश कसरावल्ली, गुरुदत्त तथा देश के भीतर और विश्व मंच पर अग्रणी रहे अन्य लोगों से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए।
भारतीय फिल्म उद्योग में देश के विभिन्न हिस्सों के लोग शमिल हैं जो अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं, विभिन्न धर्मों का पालन करते हैं तथा समाज के अनेक वर्गों से संबंध रखते हैं। यह एक ऐसा उद्योग है जिसने बहुत से लोगों को जमीन से आसमान तक पहुंचने के अवसर प्रदान किए हैं। मैं फिल्म उद्योग से आग्रह करता हूं कि वह अपनी उदारता, बहुलवाद और समावेशिता को कायम रखे और उसे मजबूत बनाए तथा उसका पूरे देश में विस्तार करे।
-भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार सहित राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर (विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 03-05-2014)

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