Wednesday, June 25, 2014

Pul Mithai (पुल मिठाई)





पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास एक विचित्र नाम वाला भीड़भाड़ वाला स्थान है। ‘पुल मिठाई’ या ‘मिठाई पुल’ यानी मिठाई से जुड़ा हुआ एक पुल, जिसका इतिहास 18 वीं सदी के अंत जितना पुराना है। यह स्थान पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से पीली कोठी की ओर जाने वाले रास्ते पर है। उसका एक हिस्सा जहां कुतुब रोड और आजाद मार्केट रोड मिलती हैं और उसके नीचे से दो रेल लाइनें गुजरती है। आज इस गंदे रास्ते पर अस्थायी छतरियां के नीचे से मसाले, सूखे मेवे और अनाज बेचते खुदरा विक्रेताओं की दुकानें हैं। वैसे इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि यहां सन् 1783 में यह पुल क्यों था जबकि पहली रेलवे लाइन सन् 1860 के बाद ही बिछी।

कैसे पड़ा नाम
इतिहास की किताबों को खंगाले तो इसके नाम को लेकर अलग प्रकार की जानकारी मिलती है। बताते हैं कि पुल मिठाई का नाम सरदार बघेल सिंह से जुड़ा है, जो मिठाई के बहुत शौकीन थे। उस दौर में, यहां पर मिठाइयों की एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था और बघेल सिंह ने सबसे अच्छी मिठाई बनाने वालों को इनाम दिए थे। इस घटना के बाद यह स्थान पुल मिठाई के नाम से मशहूर हो गया। कहा यह भी जाता है कि फैंथम के 1857 की पहली आजादी की लड़ाई पर लिखे उपन्यास मरियम, जिस पर बाद में जुनून फिल्म बनी, में अजीब बात कही गई है कि जिन्न मिठाई का पुल से मिठाई लाते थे और वहां के दुकानदार देर रात तक अपनी दुकानें खोल कर रखते थे। बताते हैं कि सन 1957 तक ऐसी कई दुकानें वहां मौजूद थी।

कौन थे बघेल सिंह
इतिहासकारों के अनुसार मराठा सेना के लगातार हमलों से भयभीत मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय (1761) के कहने पर बेगम समरू ने सिख सरदारों को मदद के लिए आमंत्रित किया। सरदार बघेल सिंह के नेतृत्व में सिख सेना के आगमन की सूचना मिलने पर मुगल बादशाह ने घबराकर उसकी मदद के लिए आए सिखों के प्रवेश को रोकने के लिए शहर के दरवाजे बंद करने का आदेश दिया। उसके बावजूद, सिख सेना ने अजमेरी गेट से शहर में प्रवेश किया और तुर्कमान गेट के इलाके में आग लगा दी। उन्होंने शहर में लूटपाट की और रात में मजनू का टीला पर आराम किया। सरधना की बेगम समरू सिखों के साथ वादाखिलाफी करने के कारण मुगल बादशाह से बेहद नाराज हो गई। उसके बाद बादशाह ने बेगम को सरदार बघेल सिंह को बातचीत के लिए उनके पास लाने को कहा। सरदार बघेल सिंह अपने 500 सिख घुड़सवार सैनिकों के साथ आया और उसने बेगम के बगीचे में अपना डेरा डाला जहां पर अब चांदनी चैक इलाके का बिजली के सामान का थोक बाजार भगीरथ प्लेस है।

मदद की दरकार
बेगम समरू ने सरदार बघेल सिंह को बीती बातों को भूलकर मुगल बादशाह की मदद करने की गुजारिश की। उसने कहा कि आप बाबा नानक संबंध रखते हो और हम बाबर के वारिस हैं तो हमें दोस्त बन जाना चाहिए। लेकिन बघेल सिंह ने बेगम समरू के बगीचे में ही बने रहना पसंद किया और मुगल बादशाह से भेंट नहीं की। बेगम समरू ने पतनशील मुगल साम्राज्य को मराठों के कहर से बचाने के लिए सिखों को दिल्ली लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसने बघेल सिंह को कहा कि अगर मुगल और सिख दोस्त बन जाते हैं तो मराठों और अंग्रेजों की फौजें दिल्ली पर हमला करने की हिम्मत नहीं करेंगी। बेगम के साथ आया मुगल वजीर बादशाह शाह आलम से एक फरमान लाया था जिसमें सिखों को उनके ऐतिहासिक गुरूद्वारों के निर्माण की आज्ञा दी गई थी। उन्होंने राजधानी में गुरूद्वारों के निर्माण के लिए चार साल रहने और अपनी सेना के खर्च के लिए मुगलों की ओर से वसूले जाने वाले लगान में से एक हिस्से की मांग की।

सात गुरुद्वारों का निर्माण
बघेल सिंह ने अपनी सेना को दूर भेज दिया और केवल 4000 लड़ाकू सैनिकों को अपने साथ रखा। उन्होंने दिल्ली में सात ऐतिहासिक सिख धार्मिक स्थलों का निर्माण किया, जिनमें माता सुंदरी गुरुद्वारा, बंगला साहिब, बाला साहिब, रकाबगंज, शीशगंज, मोती बाग, मजनू का टीला और दमदमा साहिब शामिल है। सरदार बघेल सिंह को सन् 1761 ईस्वी में सिंधिया मिसल की जत्थेदारी प्राप्त हुई। साहसी और बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी बघेल सिंह गाँव झबाल, अमृतसर के रहने वाले थे। उनके समय में, दिल्ली नजीबुद्दौला के अधिकार में थी। पंजाब लौटते समय बघेल सिंह ने अपना एक वकील लखपतराय दिल्ली दरबार में अपने प्रतिनिधि के रूप में छोड़ दिया। वर्ष 1802 में होशियारपुर में बघेल सिंह का निधन हुआ।


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